राजकोषीय घाटे की सीमा हो सकती है लचीली
आम बजट 2017-18 में राजकोषीय घाटे की सीमा लचीली हो सकती है
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। आम बजट 2017-18 में राजकोषीय घाटे की सीमा लचीली हो सकती है। ऐसा होने पर सरकार के लिए विकास कार्यो की खातिर धनराशि आवंटित करने के लिए गुंजाइश अधिक होगी। साथ ही, नोटबंदी के चलते अगर अर्थव्यवस्था में सुस्ती आती है तो विकास दर को उठाने के लिए सरकार सार्वजनिक निवेश भी बढ़ा सकेगी।
चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र सरकार ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.5 प्रतिशत रखा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बीते साल बजट पेश करते हुए एलान किया था कि सरकार 2017-18 में राजकोषीय घाटा कम करके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत पर ले आएगी। हालांकि, इसी दौरान वित्त मंत्रलय ने राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजटीय प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था की समीक्षा के लिए पूर्व रायसभा सदस्य एनके सिंह की अध्यक्षता में समिति का गठन कर दिया। समिति की रिपोर्ट अगले कुछ दिनों में आने वाली है। माना जा रहा है कि यह समिति राजकोषीय घाटे के निश्चित लक्ष्य की जगह एक रेंज रखने का सुझाव दे सकती है। अगले वित्त वर्ष 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे के लिए यह दायरा तीन से 3.5 प्रतिशत हो सकता है।
राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजटीय प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून 2003 में संसद से पारित हुआ था। इसके प्रावधानों के अनुसार केंद्र को 2007-08 तक अपने राजस्व घाटे को घटाकर तीन प्रतिशत के स्तर पर लाना था। हालांकि 2008 में ग्लोबल मंदी के चलते यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया। केंद्र सरकार के लिए राजकोषीय घाटे की रेंज तय होने पर रायों को भी यह सुविधा मिलेगी। ऐसे में जो राय राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, उनके लिए यह सुविधाजनक होगा। सूत्रों ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में जीएसटी लागू होगा साथ ही नोटबंदी के असर को लेकर भी आशंकाएं जताई जा रही हैं। ऐसे में राजकोषीय घाटे की सीमा को कठोर रखने के बजाय लचीला रखना बेहतर रहेगा।