किसान के कर्ज माफी से देश की अर्थव्यवस्था को होगा फायदा भी
किसानों का कर्ज माफ करने से ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग मांग बढ़ाने में मदद मिल सकती है
नई दिल्ली (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कृषि कर्ज माफी के एलान के बाद अन्य राज्यों में भी कृषि ऋण माफ करने की मांग जोर पकड़ सकती है। किसानों का कर्ज माफ करने वाले राज्यों की राजकोषीय स्थिति बिगड़ सकती है लेकिन इसका एक सकारात्मक असर यह होगा कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग मांग बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
दरअसल लगातार दो साल सूखे की मार के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में मांग पर असर पड़ा है। हालांकि अच्छा संकेत यह है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वर्ष 2015-16 में जो गिरावट आयी थी अब वह थम गयी है। इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था स्थिर हो गयी है हालांकि गतिविधियां अब भी सुस्त हैं। वैसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अचानक बड़ा उलटफेर होने के आसार नहीं है।
वित्तीय एजेंसी ईडलवाइस सिक्योरिटी की एक ताजा रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र में कर्ज की स्थिति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था व सरकार की राजकोषीय स्थिति पर उसके प्रभाव का व्यापक अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया है और दूसरी राज्य सरकारें इसका अनुसरण कर सकती हैं। अगर ऐसा नहीं होता है तो भी अन्य राज्यों के किसान कर्ज माफी की उम्मीद में कृषि ऋण चुकाने में विलंब कर सकते हैं। पहले मामले में कर्ज का बोझ सरकार उठाती है जबकि दूसरे मामले में बैंकों पर असर पड़ता है।
हालांकि कर्ज का बोझ दूर करने से ग्रामीण उपभोग को बढ़ाया जा सकता है। सरकार कृषि ऋण माफी का विकल्प चुन सकती हैं और राजकोषीय घाटा बढ़ाने के बजाय शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे दूसरे कार्यो पर खर्च कम कर इसे अंजाम दिया जा सकता है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण परिवारों के पास जाने वाली राशि में कोई अंतर नहीं आएगा।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश की नवनिर्वाचित योगी सरकार ने 86 लाख किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की है। बताया जाता है कि इससे राज्य सरकार के खजाने पर लगभग 36,000 करोड़ रुपये का भार आएगा।
रिपोर्ट में उस स्थिति का विश्लेषण भी किया गया है जब किसान खर्च करने के बजाय कर्ज चुकाने के लिए अपने पैसे का इस्तेमाल करें। इसमें कहा गया है कि किसान धनराशि खर्च करने के बजाय कर्ज चुकाने को प्राथमिकता दे सकते हैं इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में मांग कमजोर रह सकती है। ऐसे में कृषि ऋण माफी की मांग भी बढ़ सकती है। इसका मतलब यह होगा कि राज्यों की राजकोषीय स्थिति बिगड़ सकती है। अगर ये दोनों ही विकल्प न आजमाए जाएं तो कर्ज न चुकाए जाने से बैंकों की स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में इन विकल्पों का कैसे इस्तेमाल होता है, यह देखने वाली बात होगी।