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वैश्विक मंदी से परेशान निर्यातकों के लिए नई मुसीबत बना जीएसटी

जीएसटी रिफंड में बेहद जटिल और तकनीकी मुश्किलों के चलते देरी हो रही है

By Surbhi JainEdited By: Published: Wed, 25 Oct 2017 11:33 AM (IST)Updated: Wed, 25 Oct 2017 11:33 AM (IST)
वैश्विक मंदी से परेशान निर्यातकों के लिए नई मुसीबत बना जीएसटी
वैश्विक मंदी से परेशान निर्यातकों के लिए नई मुसीबत बना जीएसटी

नई दिल्ली (जेएनएन)। वैश्विक बाजार में मंदी के चलते निर्यातक पहले ही परेशान थे, ऊपर से जीएसटी उनके लिए नई मुसीबत लेकर आया है। जीएसटी की प्रक्रियागत जटिलताएं न सिर्फ निर्यातकों के व्यवसाय की रफ्तार को धीमा कर रही हैं बल्कि उन्हें ड्यूटी पर मिलने वाले रिफंड में भी देरी हो रही है। आश्वासनों के बावजूद अभी तक रिफंड की तीन चौथाई से अधिक राशि निर्यातकों को जारी नहीं हो पायी है। हालत यह हो गई है कि छोटे और मझोले निर्यातकों को अपने ऑर्डर तक रोकने पड़ रहे हैं।

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निर्यातक एसोसिएशनों के संगठनों और वाणिज्य व उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु के साथ हुई बैठक के बाद यह तय हुआ था कि निर्यातकों को जुलाई का रिफंड 10 अक्टूबर से मिलना शुरू हो जाएगा। लेकिन सूत्र बताते हैं कि अभी तक रिफंड की एक चौथाई से भी कम राशि ही निर्यातकों को जारी हो पायी है। इस महीने के लिए करीब 750 करोड़ रुपये का रिफंड निर्यातकों का बनता है। लेकिन सरकार दो सप्ताह बाद भी केवल 150 करोड़ रुपये की राशि ही जारी कर पायी है।

रिफंड मिलने की ज्यादा परेशानी इनलैंड कंटेनर डिपो (आइसीडी) से होने वाले निर्यात के मामलों में है। आइसीडी से किसी निर्यातक का माल निकलने के बाद उसकी सूचना कस्टम विभाग को दी जाती है। इस प्रक्रिया में निर्यातक के शिपमेंट का एक नंबर जेनरेट होता है। सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में इतना आगे होने के बावजूद कस्टम विभाग को यह सूचना भेजने के लिए प्रत्येक शिपमेंट का नंबर मैनुअली फीड किया जाता है। इसमें अक्सर गलती होती है और इस तकनीकी गड़बड़ी के चलते निर्यातक को मिलने वाले रिफंड की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है।

देश में कुल 67 आइसीडी हैं जिनमें 30 सरकारी, 34 निजी और तीन राज्य सरकारों के हैं। निर्यातकों का कहना है कि रिफंड की प्रक्रिया को बेहद दुरूह बनाया गया है। विभाग हर रोज जितने निर्यातकों का रिफंड मंजूर करता है उनकी कुल राशि बैंक को भेजता है और फिर बैंक उसे सभी निर्यातकों के खाते में ट्रांसफर करते हैं। निर्यातकों की मांग है कि यह राशि विभाग को सीधे उनके खातों में ही ट्रांसफर करनी चाहिए जिससे वक्त बचे।

चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म एससी डिनोडिया एंड कंपनी के पार्टनर संदीप डिनोडिया कहते हैं कि रिफंड की जो प्रक्रिया है उसमें जीएसटीआर-2 दाखिल करने के बाद ही रिफंड मिलने का प्रावधान है। लेकिन अभी जुलाई का ही जीएसटीआर-2 दाखिल हो रहा है। अगस्त और सितंबर का यह रिटर्न दाखिल होना तो अभी बाकी है। इनका रिफंड मिलने में तो निर्यातकों को अभी तीन-चार महीने का वक्त और लगेगा। उन्होंने बताया कि अगर कोई अपैरल निर्यातक 50 करोड़ रुपये का कच्चा माल खरीदता है तो उसका रिफंड करीब ढाई करोड़ रुपये बनता है। अगर रिफंड की प्रक्रिया यही बनी रही तो इस अनुपात में प्रत्येक निर्यातक की राशि तीन-चार महीने तक सरकार के पास फंसी रहेगी।

रिफंड में मिलने वाली इस देरी की चलते निर्यातकों के व्यवसाय पर सीधा असर पड़ रहा है। खासतौर से छोटे और मझौले निर्यातकों की लिक्विडिटी इससे बुरी तरह प्रभावित हो रही है। उनके लिए रिफंड की राशि ही वर्किग कैपिटल के तौर पर काम आती है। रिफंड की देरी के चलते निर्यातकों को अपने ऑर्डर तक कैंसिल करने पड़ रहे हैं। फियो के महानिदेशक डा. अजय सहाय ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि सरकार को इन तकनीकी चुनौतियों से जल्द निपटना चाहिए ताकि निर्यातकों की लिक्विडिटी को बहाल किया जा सके।


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