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घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बनाना होगा प्रतिस्पर्धी, लागत कम करने के करने होंगे उपाय

वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में यह स्वीकार करते हुए कहा

By NiteshEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 08:16 PM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 08:40 AM (IST)
घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बनाना होगा प्रतिस्पर्धी, लागत कम करने के करने होंगे उपाय
घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बनाना होगा प्रतिस्पर्धी, लागत कम करने के करने होंगे उपाय

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आरसेप से बाहर रहने के सरकार के फैसले को बड़े निर्यात संगठनों ने वाजिब ठहराते हुए कहा है कि अब सरकार को घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को अन्य देशों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बनाने की जरूरत है। निर्यात संगठनों के फेडरेशन फियो ने कहा है कि कर्ज और लॉजिस्टिक्स की लागत को कम करके घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों के उत्पादों को वैश्विक बाजार में मुकाबला करने में आसानी होगी। फियो के प्रेसिडेंट शरद कुमार सराफ ने कहा है कि मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों को राज्यों में लगने वाले टैक्स और लेवी पर छूट देकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है। फियो का सुझाव है कि सरकार का लक्ष्य प्रति वर्ष जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी में एक परसेंट की वृद्धि होना चाहिए। इससे अगले दस साल में जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी को 25 परसेंट के स्तर तक लाया जा सकेगा।

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सरकार ने घरेलू उद्योग और किसानों से जुड़ी चिंताओं के आधार पर फिलहाल आरसेप से बाहर रहने का फैसला किया है। आगे चलते हुए यदि आरसेप सदस्य भारत की चिंताओं को एजेंडा में शामिल करने को तैयार होते हैं तो यह निर्णय बदल भी सकता है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में यह स्वीकार करते हुए कहा भी कि अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में दरवाजे कभी बंद नहीं किये जाते।

जानकारों का मानना है कि जब तक देश आरसेप से बाहर है तब तक घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मुकाबले में खड़ा होने के लिए तैयार किया जा सकता है। इसके लिए सरकार की तरफ से उद्योगों की लागत कम करने के उपायों पर सर्वाधिक जोर दिया जा रहा है।उधर ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया ने आरसेप से बाहर रहने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले को साहसी और देशहित में बताया है। टीपीसीआइ के चेयरमैन मोहित सिंगला के मुताबिक घरेलू उद्योगों का संरक्षण देश का सार्वभौमिक अधिकार है। अगर आरसेप के समझौते पर हस्ताक्षर होते तो न केवल निर्यातक समुदाय प्रभावित होता बल्कि डेयरी, मीट और कृषि क्षेत्र को भी नुकसान उठाना पड़ता।


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