चुनौतियों के बावजूद निजीकरण को लेकर बड़ी तैयारी, कुछ सरकारी बैंकों में केंद्र की हिस्सेदारी घटा कर 33 फीसद करने का विकल्प
सरकारी तेल कंपनियों सरकारी बैंकों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में पहले से जारी निजीकरण का काम जो ठहरा हुआ था उसे नए सिरे से आगे बढ़ाया जाएगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आपदा को अवसर में बदलने का नारा दे चुकी पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार विनिवेश के क्षेत्र में भी इस नारे को पुरजोर तरीके से आजमाने के लिए कमर कस चुकी है। ऐसे समय जब लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां सुस्त हैं तब वित्त मंत्रालय के नेतृत्व में अभी तक के सबसे बड़े निजीकरण प्रक्रिया को लेकर काम शुरु किया गया है।
सरकारी तेल कंपनियों, सरकारी बैंकों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में पहले से जारी निजीकरण का काम जो ठहरा हुआ था उसे नए सिरे से आगे बढ़ाया जाएगा। इसके तहत एक सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनी में दूसरी सरकारी तेल कंपनियों की क्रास होल्डिंग (हिस्सेदारी) पूरी तरह से बेची जाएगी और कुछ सरकारी बैंकों को सीधे तौर पर दूसरे निजी बैंकों को बेचने का भी विकल्प आजमाया जाएगा।
वित्त मंत्रालय ने विनिवेश कार्यक्रम को परवान चढ़ाने के लिए हाल के दिनों में तकरीबन तीन दर्जन विभागों से संपर्क साधा है। इसमें पेट्रोलियम मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, कानून मंत्रालय, कंपनी कार्य मंत्रालय, श्रम मंत्रालय से लेकर भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड (सेबी), भारतीय बीमा विनियामक व विकास प्राधिकरण (ईऱडा) जैसी नियामक एजेंसियां शामिल हैं।
डिपार्टमेंट ऑफ इंवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (दीपम) के अधिकारियों का कहना है कि उच्च स्तर पर पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि चुनौतीपूर्ण समय में बड़े सुधारों पर और ज्यादा ध्यान देना है ताकि जब माहौल में सुधार हो तो हम बड़ी छलांग के लिए तैयार रहें। उक्त अधिकारियों का केंद्र सरकार की उस घोषणा की तरफ है जिसमें हर रणनीतिक सेक्टर में 1 से 4 उपक्रम ही सरकारी क्षेत्र के तहत रखने की बात कही गई थी।
कोविड-19 से देश की इकोनोमी को बचाने के लिए 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के तहत ही इसकी घोषणा की गई थी।इस क्रम में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया था कि सरकारी बैंकों की संख्या भी घटा कर 4-5 की जाएगी। अभी सरकारी क्षेत्र के बैंकों की संख्या 12 है। तब यह माना गया था कि जिस तरह से हाल ही में 10 बैंकों का विलय कर तीन बैंक बनाये गये हैं वैसा ही शेष बचे बैंकों के साथ भी होगा।
लेकिन सूत्रों का कहना है कि शेष बचे सरकारी बैंकों में से कुछ का सरकार पूरी तरह से निजीकरण का विकल्प खुला हुआ है। एक विकल्प यह भी है कि कुछ बैंकों में सरकार अपनी हिस्सेदारी घटा कर 33 फीसद तक ले आए। अभी इन बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 52 फीसद से नीचे नहीं हो सकती। लेकिन बैंकिंग कानून में संशोधन कर सरकारी बैंकों में केंद्र की हिस्सेदारी 33 फीसद रख कर ही इनके सरकारी स्वरूप को बनाये रखा जा सकता है।
निजी क्षेत्र को रणनीतिक साझेदार के तौर पर शामिल कर सरकार बाद में इनसे पूरी तरह से बाहर निकल सकती है। इसी तरह से सरकारी तेल कंपनियों की एक दूसरे में रखी गई हिस्सेदारी को पूरी तरह से बाजार में बेचने का फैसला भी होना लगभग तय है।निजीकरण को लेकर तेजी से आगे बढ़ने की मंशा के पीछे बड़ी वजह सरकार की माली हालत है। मंदी की वजह से प्रत्यक्ष कर व अप्रत्यक्ष कर संग्रह के मोर्चे पर हालात सही नहीं है। दीपम सचिव ने हाल ही में यह कहा था कि निजीकरण से चालू वित्त वर्ष के दौरान 1.20 लाख करोड़ रुपये जुटाये जा सकते हैं।