एक महीने में 9 फीसद सस्ता हुआ क्रूड ऑयल, पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटने से आम जनता को होगा फायदा
पिछले वर्ष नवंबर में भारतीय तेल कंपनियों ने औसतन 62.54 डॉलर प्रति बैरल की दर से कच्चा तेल खरीदा था। दिसंबर में इसकी औसत कीमत 65.52 डॉलर प्रति बैरल की थी।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। राजकोषीय मोर्चे पर कई चुनौतियों का सामना कर रही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कच्चे तेल के दाम में मौजूदा गिरावट से काफी राहत मिल रही होगी। पिछले एक महीने में ईरान और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने से कच्चे तेल कीमतों में बढ़ोतरी की सारी संभावनाएं हवा हो चुकी हैं। वैश्विक मंदी की वजह से मांग पहले ही कमजोर थी और अब चीन में वायरस फैलने की डर इसमें और गिरावट आने की आशंका जताई जा रही है। इस वजह से गुरुवार को कच्चे तेल की कीमतों में तीन फीसद की गिरावट देखी गई।
इस महीने कच्चे तेल की कीमतों में नौ फीसद की गिरावट आ चुकी है। इससे आम जनता को पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमतों में आगे भी राहत मिलने के आसार हैं। पिछले वर्ष नवंबर में भारतीय तेल कंपनियों ने औसतन 62.54 डॉलर प्रति बैरल की दर से कच्चा तेल खरीदा था। दिसंबर में इसकी औसत कीमत 65.52 डॉलर प्रति बैरल की थी।
इस सप्ताह बुधवार के आंकड़े बता रहे हैं कि यह कीमत 64.31 डॉलर प्रति बैरल रही है। गुरुवार की तीन फीसद गिरावट के बाद इस महीने की औसत कीमत और नीचे आएगी। इसका असर घरेलू बाजार में पेट्रोल व डीजल की कीमतों में साफ दिखाई दे रहा है।
इस वर्ष 11 जनवरी के बाद से दिल्ली में पेट्रोल की खुदरा कीमत 1.36 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 1.31 रुपये प्रति लीटर घट चुकी है। तेल कंपनियों के अधिकारी बताते हैं कि खुदरा कीमत में अभी और गिरावट होगी। वैश्विक मांग घटने की वजह से कई देश भारत के साथ बहुत ही अच्छी शर्तो पर कच्चे तेल का सौदा करने को तैयार हैं।
ईरान-अमेरिका तनाव की वजह से जो हालात पैदा हुए थे वे क्षणिक साबित हुए हैं और अभी पूरी तरह से तेल खरीद करने वाले देशों के लिए उपयुक्त बाजार है।कच्चे तेल में मंदी की निश्चित तौर पर एक वजह यह है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तरफ से मांग कम हुई है। कच्चे तेल के उत्पादक और निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष के अंत तक मांग के मुताबिक क्रूड का उत्पादन 10 लाख बैरल प्रति दिन का हो रहा था।
ओपेक देशों की समस्या यह है कि उत्पादन में कटौती की जाए या नहीं, इस बारे में वे इस वर्ष मार्च से पहले फैसला नहीं कर सकेंगे। इसी बीच चीन में वायरस की वजह से औद्योगिक मांग में और कमी की आशंका है। गुरुवार को कच्चे तेल में गिरावट के लिए इसे ही सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। अपनी जरूरत का 83 फीसद कच्चा तेल आयात करने वाले देश भारत के लिए यह शुभ समाचार है।