कोविड ने गरीबों को किया है सबसे ज्यादा प्रभावित, मई-जून में सुधार के बाद जुलाई में फिर कमजोर पड़ी आर्थिक गतिविधियांः RBI
आरबीआइ का कहना है कि जिस तरह के कई संस्थानों ने महामारी के दूसरे चक्र के आने की आशंका जताई है उस रोकने के हर मुमकिन कोशिश करनी होगी। (PC AP)
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। कोविड ने देश की इकोनोमी को कितना नुकसान पहुंचाया है, इसकी अभी तक की सबसे विस्तृत समीक्षा भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से मंगलवार को जारी सालाना रिपोर्ट में की गई है। वैसे तो यह सालाना रिपोर्ट पिछले वित्त वर्ष (2019-20) की है लेकिन इस बार परंपरा से हटते हुए आरबीआइ ने इसका फोकस कोविड-19 के मद्देनजर भावी उम्मीदों और हालात पर केंद्रित रखा है।
रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने यह भी माना है कि महामारी के मद्देनजर हालात किस करवट बैठेगा, यह अभी अनुमान लगाना मुश्किल है। खास तौर पर तब जब लॉकडाउन के बाद भारतीय इकोनोमी में सुधार के जो लक्षण मई-जून में दिखाई दिए थे वे जुलाई में गायब होते नजर आ रहे हैं। आरबीआइ ने हालात को बेहद अप्रत्याशित करार देते हुए केंद्र सरकार व राज्यों के समक्ष उन उपायों की एक फेहरिस्त सौंपी है जो मौजूदा निराशा के माहौल को दूर करने के लिए जरुरी होगा। इसमें बड़े पैमाने पर जमीन, श्रम व गवर्नेस में सुधार करने और निजीकरण को बढ़ावा देने पर जोर है।
केंद्रीय बैंक ने दो टूक कहा है कि गरीब लोगों पर इस महामारी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है। मांग खत्म होने से बडे पैमाने पर असंगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हुए हैं जबकि आपूर्ति प्रभावित होने की वजह से गैर जरुरी व जरुरी चीजों की कीमतों में वृद्धि हो रही है। समाज में एक नई तरह की असमानता भी उपजी है। व्हाईट कॉलर जॉब (आफिस में काम करने वाले पेशेवर) वाले घर से काम कर रहे है जबकि मजदूरों व असंगठित क्षेत्र को बाहर जाना पड़ रहा है जिससे उनके कोरोना से संक्रमित होने का खतरा बढ़ गया है।
आरबीआइ का कहना है कि जिस तरह के कई संस्थानों ने महामारी के दूसरे चक्र के आने की आशंका जताई है उस रोकने के हर मुमकिन कोशिश करनी होगी। अगर इसे रोक दिया जाता है तो तीसरी तिमाही से इकोनोमी के ज्यादा तेजी से सामान्य होने की संभावना है।
हालात को तेजी से सामान्य करने में मांग बढ़ाना सबसे ज्यादा जरुरी है जिसका रुख कोविड-19 से पहले से ही नीचे की तरफ था। मांग बढ़ाने में सरकार की भूमिका अहम होगी। सरकार की तरफ से खर्चे बढ़ाने होंगे। इससे ग्रामीण सेक्टर में मांग भी तेज होगी और अंतत: इससे लोगों में खाने-पीने व फार्मास्यूटिकल्स के अलावा भी खर्च करने के लिए प्रोत्साहन बढ़ेगा। आरबीआइ ने ई-वे बिल और गूगल मोबिलिटी ट्रेंड के आधार पर कहा है कि जुलाई, 2019 में मांग मई-जून के मुकाबले काफी कम रही है। लोगों अतिरिक्त खर्च करने से भी बच रहे हैं। अंत में आरबीआइ ने कहा है कि कोविड-19 के बाद दुनिया सामान्य हो भी जाएगी तो भी यह पहले जैसी नहीं रहेगी। कोविड-19 को लेकर अभी सब कुछ अनिश्चित है।
हालात सुधारने को आरबीआइ के मंत्र
- स्टील, पावर, पोर्ट, रेलवे में केंद्र व राज्य की तरफ से भारी निवेश हो
- उक्त सभी ढांचागत सेक्टर में खाली जमीन का निजीकरण जरुरी
- भूमि, श्रम व बिजली सेक्टर में जीएसटी काउंसिल जैसी निकाय बने
- राज्यों से विवाद मुक्त जमीन का डाटा उपलब्ध हो, निजी प्लांट लगे
- रेलवे में एफडीआइ की अपार संभावनाएं, आजमाने का मौका
- कारोबार के लिहाज से माहौल सुधार के लिए बड़े कानूनी सुधार हो
- श्रम सुधार के बड़े कदमों के साथ महिला श्रमिकों की बड़ी भागीदारी तय हो
- कृषि सेक्टर में निर्यात कई गुणा बढ़ाने की क्षमता
- मैन्यूफैक्चरिंग आधारित इकोनोमी बनाने के लिए एमएसएमई को मिले हर सुविधा
- सरकारी बैंकों को अतिरिक्त पूंजी देने को लेकर स्थिति स्पष्ट की जाए