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साल 2018 में और बढ़ेगा को-वर्किंग स्पेस का चलन

उत्पादकता बढ़ाने और लागत कम करने के लिए छोटे उद्यमी तेजी से यह मॉडल अपना रहे हैं। रियल एस्टेट के बड़े दिग्गज भी इसमें कदम रख सकते हैं।

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 08 Jan 2018 10:29 AM (IST)Updated: Mon, 08 Jan 2018 10:29 AM (IST)
साल 2018 में और बढ़ेगा को-वर्किंग स्पेस का चलन
साल 2018 में और बढ़ेगा को-वर्किंग स्पेस का चलन

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। लागत कम करने और उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से हाल के वर्षो में जोर पकड़ने वाला को-वर्किंग स्पेस का सेक्टर 2018 में और तेज गति पकड़ सकता है। कभी नए उद्यमियों की जरूरत के तौर पर उभरे इस चलन को अब बड़ी कंपनियां भी अपना रही हैं। प्रॉपर्टी सलाहकार फर्म जॉन्स लैंग लासेल (जेएलएल) के अध्ययन में यह बात सामने आई है।

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को-वर्किंग का तरीका नया नहीं है, लेकिन पिछले कुछ साल में दुनियाभर में इसमें तेजी देखने को मिली है। निजी क्षेत्र तेजी से इसे अपना रहा है। 2018 में इस क्षेत्र में 40 करोड़ डॉलर (करीब 2,532 करोड़ रुपये) का निवेश होने का अनुमान है। जेएलएल इंडिया के सीईओ और कंट्री हेड रमेश नायर ने कहा, ‘अब को-वर्किंग स्पेस केवल नए उद्यमियों या फ्रीलांसर लोगों की पसंद नहीं रह गया है। छोटे उभरते उद्यमों के साथ-साथ अब बड़े कॉरपोरेट भी इसमें रुचि दिखाने लगे हैं।’

फ्रीलांसर लोग लागत बचाने के लिए इस विकल्प का चुनाव करते हैं। वहीं स्टार्टअप्स और छोटे व मझोले उद्यमी लागत के साथ-साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी ध्यान में रखकर इसका चुनाव कर रहे हैं।

बड़ी कंपनियों के इस दिशा में झुकाव की वजह अलग है। इन कंपनियों का फोकस कार्यस्थल तक अपने स्टाफ की पहुंच को आसान बनाने पर होता है। ऐसे में किसी प्राइम लोकेशन पर अपने स्टाफ को बैठाना कंपनियों की प्राथमिकता रहती है। इस दिशा में कंपनियां अब को-वर्किंग स्पेस मॉडल को अपनाने से भी गुरेज नहीं कर रही हैं।
नाइट फ्रैंक इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री सामंतक दास ने कहा कि भारत में केवल यह देखना ही रुचिकर नहीं है कि यह मॉडल कितनी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यहां यह बात भी ध्यान देने लायक है कि इसमें विविधता भी बढ़ रही है। 2018 में यह विविधता और बढ़ेगी। यही वजह है कि इस मौके को भुनाने के लिए रियल्टी सेक्टर के बड़े खिलाड़ी भी इसमें दांव लगाने की तैयारी में हैं। 2018 में कुछ दिग्गज फर्मो की दखल इस सेक्टर में देखने को मिल सकती है। भारत में अभी करीब 1.2 से 1.6 करोड़ सिटिंग की व्यवस्था वाले को-वर्किंग स्पेस की जरूरत महसूस की जा रही है। आने वाले दिनों में यह और तेजी से बढ़ने की है।

क्या है को-वर्किंग स्पेस मॉडल
को-वर्किंग स्पेस मतलब एक ऐसा ऑफिस जिसमें एक से ज्यादा कंपनियों के लोग बैठते हों। शुरुआत में फ्रीलांसर उद्यमियों ने इस व्यवस्था को अपनाया था। किसी अच्छी लोकेशन पर अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए एक केबिन या दो-चार कुर्सियों की जरूरत वाले उद्यमियों के लिए यह शानदार विकल्प बनकर उभरा। अब बड़ी कंपनियां भी रिमोट लोकेशन पर किसी बने-बनाए सेटअप में अपने स्टाफ बैठाने के लिए केबिन और डेस्क किराये पर लेने लगी हैं।


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