भारत को मैन्युफैक्चरिंग में मदद के लिए चीन है तैयार, दोनों देशों को होगा फायदा
चीन के राजदूत सुन वीडोंग ने कहा है कि उनका देश भारत के साथ औद्योगिक और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ऐसा सहयोग करने को तैयार है जो दोनों देशों के लिए फायेदमंद साबित होगा
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अगले शुक्रवार से बैंकॉक (थाइलैंड) में होने वाली आरसेप की बेहद अहम बैठक से ठीक पहले चीन ने भारत को लुभाने की कोशिश की है। नई दिल्ली में चीन के राजदूत सुन वीडोंग ने कहा है कि उनका देश भारत के साथ औद्योगिक और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ऐसा सहयोग करने को तैयार है जो दोनों देशों के लिए फायेदमंद साबित होगा। इसी तरह का प्रस्ताव चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कुछ ही दिनों पहले मामल्लापुरम में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक बैठक में रखा था। अब नई दिल्ली में चीन के राजदूत ने इसे आगे बढ़ाया है।
विश्व बैंक की नई रिपोर्ट के मुताबिक ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग में बड़ा सुधार हुआ है। वीडोंग ने वैसे तो इस प्रस्ताव को भारत की रैंकिंग में इसी सुधार से जोड़ा है। लेकिन माना जा रहा है कि इसके पीछे असली वजह आरसेप के लिए भारत को मनाना है। दूसरी तरफ भारत ने आयात बढ़ने व घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचने की आशंकाओं को देखते हुए फूंक-फूंककर आगे बढ़ने की रणनीति अख्तियार कर ली है। भारत की चिंताओं को देखते हुए चीन बार-बार औद्योगिक व मैन्युफैक्चरिंग सहयोग बढ़ाने पर जोर दे रहा है।
जानकारों का मानना है कि चीन बेहतर समझता है कि आरसेप को लेकर भारत की तमाम चिंताओं की जड़ में दरअसल चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा है। यही वजह है कि चीन इस समझौते के जरिये भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश का प्रस्ताव दे रहा है।पिछले वर्ष भारत व चीन का द्विपक्षीय कारोबार 95.54 अरब डॉलर का था। लेकिन चीन के पक्ष में व्यापार संतुलन 53 करोड़ रुपये का था यानी चीन जितना आयात भारत से करता है उससे 53 अरब डॉलर का ज्यादा निर्यात करता है।
मोदी और चिनफिंग में जिन मुद्दों पर ज्यादा बातचीत हुई यह उनमें सबसे महत्वपूर्ण था। दोनो नेताओं ने आयात व निर्यात का फासला कम करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का फैसला किया है। लेकिन अभी तक इसकी घोषणा नहीं हुई है और इसका असर जमीन पर दिखाई देने में दो-तीन वर्ष का समय लग सकता है। वुहान में मोदी व चिनफिंग के मुलाकात के बाद चीन ने भारत से चावल, दवाई और कुछ कृषि उत्पादों के आयात को मंजूरी दी है। लेकिन इसका कारोबार के डाटा पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है।
क्या है आरसेप : रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) आसियान के 10 सदस्य देशों और छह अन्य देशों (भारत, चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड) के बीच होने वाला एक मुक्त व्यापार समझौता है। वर्ष 2012 से ही इसके लिए बात हो रही है और वर्ष 2018 में ही इस पर सहमति बनने व हस्ताक्षर होने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन शुरुआत में इस समझौते के प्रति उत्साह दिखाने के बाद भारत का रुख अब बदल गया है। बात यहां तक पहुंच गई है कि दूसरे सभी सदस्य देश यह कहने लगे हैं कि भारत की वजह से ही एफटीए मूर्त रूप नहीं ले पा रहा है। इसे सबसे ज्यादा चीन की तरफ से बढ़ावा मिल रहा है।