भारी भरकम पैकेज के बावजूद बैंकों से परेशान हैं उद्यमी, नहीं मिल रहा सहयोग
रिजर्व बैंक ने इस ऋण को शून्य फीसद जोखिम श्रेणी में डाला है। ताकि बैंक बेहिचक यह सुविधा ग्राहकों को दे सकें।
ओमप्रकाश तिवारी, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने उद्योग क्षेत्र के लिए भारी भरकम पैकेज देकर कोविड-19 के बाद उद्योगों को संकट से उबारने की पहल कर दी है। लेकिन उसी अनुपात में बैंक सहयोग करने को तैयार नहीं हैं। कई बैंक शर्तो के साथ लोन दे रहे हैं तो महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में जहां कई खाते सहकारी बैंकों में हैं उन्हें लोन मिलने की संभावना ही नहीं है।
उद्यमियों को त्वरित राहत देने के लिए केंद्र ने तीन लाख करोड़ के इमरजेंसी क्त्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) फंड की घोषणा की है। रिजर्व बैंक ने इस ऋण को शून्य फीसद जोखिम श्रेणी में डाला है। ताकि बैंक बेहिचक यह सुविधा ग्राहकों को दे सकें। लेकिन बैंकों की हिचक बरकरार है, और उद्यमी परेशान हो रहे हैं।
महाराष्ट्र में दलित चैंबर ऑफ कॉमर्स (डिक्की) के संस्थापक अध्यक्ष मिलिंद कांबले को सैंट्रल बैंक आफ इंडिया की पुणे शाखा ने यह सुविधा तो दी, लेकिन गारंटी फीस के रूप में 2 लाख 64 हजार रुपए पहले रखवा लिए। हालांकि अब बैंक यह मान रहा है कि यह राशि गलती से ले ली गई है, इसे वापस कर दिया जाएगा। कई निजी बैंक भी यह सुविधा दे तो रहे हैं, लेकिन इसके बदले में अपने कई उत्पाद ग्राहकों को बेच देना चाहते हैं। जबकि आर्थिक तंगी के इस दौर में उद्यमियों की पहली प्राथमिकता अपना उद्यम संभालना है, न कि जीवन भर का बीमा करवाना या म्यूचुअल फंड लेना।
सबसे बड़ी दिक्कत तो नान शिड्यूल्ड सहकारी क्षेत्र के बैंकों में आ रही है। महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सहकारी बैंकों का बड़ा नेटवर्क है। ज्यादातर लघु एवं सूक्ष्म उद्योग इकाइयों के खाते भी इन्हीं बैंकों में है। लेकिन सहकारी बैंकों का कहना है कि उन्हें 20 फीसद की यह सुविधा अपने ग्राहकों को देने का कोई निर्देश प्राप्त ही नहीं हुआ है।
सीए पंकज जायसवाल कहते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से जारी कैबिनेट नोट में सिर्फ शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक, ग्रामीण बैंक, वित्तीय संस्थान एवं एनबीएफसी का ही जिक्त्र किया गया था। यही कारण कि सहकारी बैंकों को कतराने का मौका मिल रहा है। जायसवाल के अनुसार एनसीजीटीसी की योजना में यह सुविधा आप्ट आउट के रूप में दी गई है। यानी बैंकों को इसे देना ही है, ग्राहक चाहें तो इससे इंकार कर सकते हैं। पुणे के उद्यमी राहुल देसाई का सहकारी बैंक इसी नोटीफिकेशन का बहाना लेकर उन्हें यह सुविधा देने से इंकार रह रहा है। स्मॉल इंडस्ट्रीज मैन्यूफैBरर्स एसोसिएशन (सीमा) के अध्यक्ष शैलेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि बैंकों के इसी असहयोग पूर्ण रवैए के कारण इस योजना के तहत घोषित राशि का 15 फीसद ही अभी वितरित हो पाया है।