कोरोना के कारण बदल जाएगी दुनिया, कारोबार और रोजगार भी नहीं रहेंगे अछूते
शारीरिक दूरी की जरूरत मशीनीकरण को और तेज करेगी तो दूसरी तरफ बड़े विशाल व महंगे कार्यालय खोलने के कॉरपोरेट कल्चर की जगह छोटे व हाईटेक आफिस बनेंगे।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। चीन से आई कोविड-19 महामारी को पैर फैलाए तकरीबन तीन महीने हो गए हैं। इन तीन महीनों में जिस तरह के हालात से पूरी दुनिया गुजर रही है उसे देखते हुए यह मानकर चलना चाहिए कि जल्द ही कोरोना का सौ फीसद दुरुस्त इलाज या प्रतिरोधक नहीं आता है तो दुनिया काफी बदली हुई होगी। लोगों के आपसी रिश्ते बदलेंगे, जीवन शैली बदली होगी, कूटनीति की चाल बदली होगी और दो देशों के रिश्तों में नया समीकरण होगा। कारोबार और रोजगार भी इससे बच नहीं पाएगा। शायद हम अपनी नींव की ओर ही लौटेंगे।
पूरा विश्व इस जद्दोजहद में होगा कि कम से कम आवश्यक वस्तुओं के मामले में आत्मनिर्भरता बढ़े। शारीरिक दूरी की जरूरत मशीनीकरण को और तेज करेगी तो दूसरी तरफ बड़े, विशाल व महंगे कार्यालय खोलने के कॉरपोरेट कल्चर की जगह छोटे व हाईटेक आफिस बनेंगे। लागत कम करने पर जोर होगा तो कर्मचारियों को घर से काम करने का फार्मूला वक्त की जरूरत बन जाएगा। जाहिर तौर पर रोजगार के लिहाज से कठिन वक्त की शुरुआत होगी।
अलग-अलग हिस्सों को सप्लाई चेन से जोड़ने का मौजूदा तरीका भी पूरी तरह से बदल सकता है। यह दौर रोजगार से लेकर कारोबार तक प्रतिस्पर्धा को शायद और तेज कर दे जिसमें सामान्य क्षमता के लिए स्थान नहीं होगा। देश के दो सबसे बड़े उद्योग चैंबर सीआइआइ और फिक्की अभी से इन संभावित बदलावों और उनसे उपजी स्थिति के सवालों का जवाब खोजने में लग गए हैं। दोनों चैंबर अलग-अलग सेक्टर के अपने सदस्यों के साथ इन बदलावों के लिए खुद को तैयार करने की कवायद शुरू कर चुके हैं। फिक्की के सेक्रेटरी जनरल दिलीप चिनाय का कहना है कि हम पूरी इकोनोमी का सूरते हाल बदलते हुए देखेंगे। इतना समझ लीजिए एक कंपनी कच्चा माल किस तरह से खरीदती है- से लेकर उससे उत्पादित माल को ग्राहक तक किस तरह से पहुंचाती है, वहां तक बदलाव दिखेगा।
सेवा क्षेत्र के साथ-साथ मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में पड़ेगा प्रभाव : इकोनोमी व रोजगार में अहम योगदान देने वाले कई सेक्टर हो सकता है कि अपनी पकड़ ढीली पाएं- मसलन, होटल, मनोरंजन व पर्यटन उद्योग। सेवा क्षेत्र के ये सेक्टर रोजगार के लिहाज से बहुत अहम हैं। कई देशों की तो पूरी इकोनोमी ही इस पर आधारित होती है। यूं तो मानव की स्मरणशक्ति कम होती है, लेकिन कोरोना डर बिठाने में कामयाब रहा तो ये क्षेत्र कमजोर होंगे। दुकानों तक जाने के खतरे को देखते हुए कंपनियां सीधे माल ग्राहकों के घर तक बगैर उसे मानव संपर्क में लाए ही पहुंचाने की व्यवस्था करेंगी, यानी बीच में माल सप्लाई करने वालों का एक बड़ा वर्ग इस श्रृंखला से गायब हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि मैन्यूफैक्चरिंग की लागत बढ़ेगी, क्योंकि एक साथ एक ही जगह पर आप ज्यादा कर्मचारियों को नहीं रख सकेंगे। विभिन्न देशों में जरूरत के ज्यादातर सामानों को घरेलू स्तर पर बनाने की परंपरा शुरू होगी जो सीधे तौर पर वैश्वीकरण के मौजूदा ढांचे को बदल देगी। हो सकता है कि निर्यात व आयात का मौजूदा ढांचा ही बदल जाए। ऐसे में देखना होगा कि निर्यात के बलबूते आर्थिक प्रगति करने वाले देश क्या रास्ता अख्तियार करते हैं। उद्योग जगत के साथ ही सरकार को भी इन व्यापक बदलावों के लिए तैयार रहना चाहिए।
डिजिटल, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की बढ़ेगी हिस्सेदारी : अंतरराष्ट्रीय फिच रेटिंग एजेंसी के प्रिंसिपल इकोनोमिस्ट सुनील सिन्हा के मुताबिक, ‘लॉकडाउन पीरियड ने न्यू इकोनोमी की कंपनियों को कम से कम यह बता दिया है कि उनका ज्यादातर काम घर से ही कर्मचारी कर सकते हैं। ऐसे में कंपनियां देश के बड़े महानगरों में भारी भरकम राशि देकर कार्यालय खोलने के औचित्य पर विचार करेंगी। जो काम अभी तक डिजिटल प्लेटफार्म पर नहीं हो रहा था वह भी होने लगा है। बैंक, वित्तीय सेवा, आईटी सेक्टर में हम आने वाले दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की हिस्सेदारी बढ़ते देखेंगे। यहां तक कि बीपीओ यानी कस्टमर के साथ संपर्क स्थापित करने वाले काम भी डिजिटल प्लेटफार्म पर होंगे।
उन्होंने कहा कि उड्डयन, वाहन, टूरिच्म जैसे उद्योगों, जो फुटफॉल से चलते हैं, में भारी बदलाव होगा। मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों में सबसे बड़ा बदलाव यह आएगा कि वे अपना सारा उत्पादन केंद्रित करने पर जोर देंगी यानी एक ही जगह से सारा उत्पादन करना। जिस सेक्टर में कई भौगोलिक जगहों पर उत्पादन करने, फिर उन्हें एक जगह जुटा कर फाइनल प्रोडक्ट तैयार करने की परंपरा है, वहां भारी बदलाव देखने को मिलेगा। कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में इस तरह की सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि सभी सामान एक ही जगह बनाए जाएं।