बजट बिगुल: टेक्सटाइल में उत्पादन लागत कम करने पर होगा फोकस
budget 2022 टेक्सटाइल में कॉटन यार्न फैबरिक और गारमेंट्स सभी शामिल हैं लेकिन गारमेंट्स का निर्यात बढ़ने से सबसे अधिक रोजगार का सृजन होगा क्योंकि गारमेंट्स फिनिश्ड उत्पाद है और गारमेंट बनाने में कई लोगों की जरूरत होती है।
राजीव कुमार, नई दिल्ली। देश में सीधे तौर पर 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले भारतीय टेक्सटाइल उद्योग की लागत को कम करने पर सरकार आगामी बजट में फोकस कर सकती है। आगामी एक फरवरी को वित्त वर्ष 2022-23 के लिए पेश होने वाले बजट में वित्त मंत्री इस दिशा में घोषणा कर सकती है ताकि भारतीय उत्पाद दुनिया के बाजार में अन्य देशों के उत्पाद से आसानी से मुकाबला कर सके। सूत्रों के मुताबिक आगामी बजट में दो प्रकार से टेक्सटाइल उद्योग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
पहला तरीका होगा कच्चे माल की लागत को कम करना और दूसरा प्रमुख उपाय होगा मैन्यूफैक्च¨रग से जुड़ी मशीन की लागत को कम करना। चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में टेक्सटाइल को प्रोडक्शन ¨लक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) से जोड़ने के साथ सात टेक्सटाइल पार्क के निर्माण की घोषणा की गई थी और चालू वित्त वर्ष में इस दिशा में काम भी शुरू हो गया। इसलिए आगामी बजट में टेक्सटाइल को लेकर नए पार्क या क्लस्टर की घोषणा की संभावना नहीं दिख रही है। अब जिस तरीके से सरकार टेक्सटाइल के निर्यात को लेकर गंभीर है और अमेरिका, ब्रिटेन, यूएई, आस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ व्यापार समझौता के दौरान उन देशों में टेक्सटाइल आइटम के निर्यात को लेकर सरकार जोर लगा रही है, उसे देखते हुए यह साफ है कि बजट में टेक्सटाइल की लागत को कम किया जा सकता है।
सूत्रों के मुताबिक सबसे पहले कॉटन पर लगने वाले 10 फीसद के आयात शुल्क को कम किया जा सकता है या इसे पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है। इससे पहले कभी कॉटन के आयात पर शुल्क नहीं लगाया गया था और जरूरत पड़ने पर गारमेंट निर्माता कॉटन का आयात कर लेते थे। लेकिन पिछले एक साल में उत्पादन में कमी और निर्यात बढ़ने से घरेलू बाजार में कॉटन की कमी हो गई और कॉटन के मूल्य में 70 फीसद से अधिक की बढ़ोतरी हुई है जिसका असर फैबरिक और गारमेंट निर्माण की लागत पर दिखने लगा है।
टेक्सटाइल में कॉटन, यार्न, फैबरिक और गारमेंट्स सभी शामिल हैं, लेकिन गारमेंट्स का निर्यात बढ़ने से सबसे अधिक रोजगार का सृजन होगा क्योंकि गारमेंट्स फिनिश्ड उत्पाद है और गारमेंट बनाने में कई लोगों की जरूरत होती है। सूत्रों के मुताबिक यार्न के निर्यात पर भी थोड़ी लगाम लगाई जा सकती है और इसके लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य निर्धारित किया जा सकता है। अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एईपीसी) के पदाधिकारी और गारमेंट निर्यात ललित ठुकराल कहते हैं कि कॉटन या यार्न के निर्यात बढ़ने से हमारा कच्चा माल बाहर जा रहा है और हमारे फिनिश्ड गुड्स की लागत बढ़ रही है जो हमारे निर्यात को प्रभावित कर रहा है और घरेलू स्तर पर भी लोगों को महंगे कपड़े खरीदने पड़ेंगे।
आगामी वित्त वर्ष के बजट में मशीन खरीदारी से जुड़ी सब्सिडी को बढ़ाने के लिए संशोधित टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड (टफ) के मद में होने वाले आवंटन में बढ़ोतरी की जा सकती है ताकि मशीन खरीद चुके निर्माताओं के बकाए का भुगतान किया जा सके और नए निर्माताओं को भी प्रोत्साहन मिल सके। चालू वित्त वर्ष में इस मद में 700 करोड़ रुपए का आवंटन काय गया था। सूत्रों के मुताबिक इस फंड को बढ़ाया जा सकता है और टेक्सटाइल मंत्रालय की तरफ से भी इसकी सिफारिश की गई है। सूत्रों के मुताबिक टेक्सटाइल सेक्टर में कौशल विकास के फंड में बढ़ोतरी की जा सकती है। चालू वित्त वर्ष में टेक्सटाइल क्षेत्र में कौशल विकास के लिए 100 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था।चालू वित्त वर्ष के बजट में टेक्सटाइल व क्लो¨थग सेक्टर के लिए 3,614 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 10 फीसद अधिक था। अभी भारत का टेक्सटाइल बाजार 100 अरब डॉलर का है जो अगले पांच साल में यह बाजार 200 अरब डॉलर को पार कर जाएगा।