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माल्या केस ब्रिटिश जज ने कहा- कर्ज देने में भारतीय बैंकों ने नियम तोड़े

लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट की जज एम्मा अर्बुथनॉट ने पूरे मामले को 'खांचे जोड़ने वाली पहेली' की तरह बताया, जिसमें कई सबूतों को आपस में जोड़कर तस्वीर बनानी होगी।

By Shubham ShankdharEdited By: Published: Sat, 17 Mar 2018 06:45 PM (IST)Updated: Sat, 17 Mar 2018 06:45 PM (IST)
माल्या केस ब्रिटिश जज ने कहा- कर्ज देने में भारतीय बैंकों ने नियम तोड़े
माल्या केस ब्रिटिश जज ने कहा- कर्ज देने में भारतीय बैंकों ने नियम तोड़े

लंदन। बैंकों का हजारों करोड़ रुपए का लोन चुकता नहीं करने वाले शराब कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई कर रही ब्रिटिश जज ने शुक्रवार को भारतीय बैंकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस को कर्ज देने में कुछ भारतीय बैंक नियमों को तोड़ रहे थे और यह बात 'बंद आंखों से भी' दिखती है।

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लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट की जज एम्मा अर्बुथनॉट ने पूरे मामले को 'खांचे जोड़ने वाली पहेली' की तरह बताया, जिसमें कई सबूतों को आपस में जोड़कर तस्वीर बनानी होगी। उम्मीद है कि वह मई में अपना फैसला सुना सकती हैं।

उन्होंने कहा कि वह इसे कुछ महीने पहले की तुलना में अब 'ज्यादा स्पष्ट' रूप में देख पा रही हैं। जज ने कहा- 'यह साफ है कि बैंकों ने (कर्ज मंजूर करने में) अपने ही दिशा-निर्देशों की अवहेलना की।' जज ने भारतीय अधिकारियों को इस मामले में कुछ बैंक कर्मियों पर लगे आरोपों को समझाने के लिए 'आमंत्रित' किया और कहा कि यह बात माल्या के खिलाफ 'साजिश' के आरोप की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

गौरतलब है कि 62 वर्षीय माल्या के खिलाफ इस अदालत में सुनवाई चल रही है कि क्या उन्हें प्रत्यर्पित कर भारत भेजा जा सकता है या नहीं, ताकि उनके खिलाफ भारत की अदालत बैंकों के साथ धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सुनवाई कर सके।

माल्या के खिलाफ करीब 9,000 करोड़ रुपए के कर्ज की धोखाधड़ी और हेराफेरी का आरोप है। इस मामले में भारत सरकार की ओर से पैरवी कर रही स्थानीय अभियोजक क्राउन प्रोसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने अदालत में जमा कराए गए साक्ष्यों की स्वीकार्यता पर अपनी दलीलें पेश कीं।

दरअसल, माल्या का बचाव कर रहीं वकील क्लैयर मॉन्टगोमरी ने पिछली सुनवाई पर इन सबूतों की स्वीकार्यता पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया था। अब जज को 27 अप्रैल को इन सबूतों की स्वीकार्यता पर फैसला करना है, साथ ही वह अपने अंतिम फैसले के लिए समय भी तय कर सकती हैं। फैसला यदि भारत सरकार के पक्ष में आता है तो ब्रिटिश गृह मंत्री को दो महीने में माल्या के प्रत्यर्पण आदेश पर दस्तखत करने होंगे। हालांकि दोनों पक्षों के पास मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील का विकल्प होगा।


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