NPA पर COVID-19 के प्रभाव का आकलन करने के लिए बैंकों ने किया स्ट्रेस टेस्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के बैंकों का जीएनपीए अनुपात सितंबर 2019 की 12.7 फीसद की तुलना में सितंबर 2020 तक 13.2 फीसद तक बढ़ सकता है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। बैंकों ने बैड लोन या नॉन परफोर्मिंग एसेट्स (एनपीए) के स्तर का आकलन करने के लिए स्ट्रेस टेस्ट किया है, ऐसा COVID -19 के प्रकोप से आई आर्थिक मंदी के कारण हुआ है। बैंकिंग सूत्रों ने कहा कि चूंकि तिमाही के साथ-साथ वित्तीय वर्ष भी समाप्त हो गया है, ऐसे में स्ट्रेस टेस्ट करना बेहतर है।
सूत्रों ने कहा कि यह रूटीन प्रक्रिया का हिस्सा है और इस संबंध में आरबीआई से बैंकों को कोई औपचारिक बातचीत की जरुरत नहीं है। सूत्रों ने कहा कि अभ्यास के लिए परिसंपत्ति की गुणवत्ता के पक्ष और बाद की पूंजी आवश्यकताओं पर सबसे खराब स्थिति के निर्माण और रिपोर्टिंग की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि यह प्रबंधन और नियामक को वित्तीय स्वास्थ्य के बारे में प्रारंभिक चेतावनी देता है।
केपीएमजी इंडिया के पार्टनर (फाइनेंशियल सर्विसेज एडवाइजरी) संजय दोशी ने कहा, 'एक बार जब खातों को लाल झंडी दिखा दी जाती है, तो बैंकों के लिए भी यह जरूरी है कि वे उचित तरीके से यह सुनिश्चित करें कि उचित कार्रवाई शुरू की जाए।'
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), जो वर्ष में दो बार वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) जारी करता है, सिस्टम लेवल पर स्ट्रेस टेस्ट करने का आईडिया देता है। दिसंबर में जारी अंतिम एफएसआर रिपोर्ट में कहा गया था कि सितंबर 2020 में बैंकों का सकल NPA अनुपात सितंबर 2020 तक बढ़कर 9.9 फीसद हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के बैंकों का जीएनपीए अनुपात सितंबर 2019 की 12.7 फीसद की तुलना में सितंबर 2020 तक 13.2 फीसद तक बढ़ सकता है। जबकि निजी बैंकों के लिए यह स्ट्रेस के परिदृश्य के तहत 3.9 फीसद से बढ़कर 4.2 फीसद हो सकता है।