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भारतीय रिजर्व बैंक के रोज बदलते नियमों से बैंक हुए परेशान

आम जनता की समस्या भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और न ही आरबीआइ के स्तर पर नियमों को उलझाने का सिलसिला ही खत्म हो रहा है।

By Surbhi JainEdited By: Published: Fri, 02 Dec 2016 10:11 AM (IST)Updated: Fri, 02 Dec 2016 10:19 AM (IST)
भारतीय रिजर्व बैंक के रोज बदलते नियमों से बैंक हुए परेशान

नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। नोटबंदी लागू हुए तीन हफ्ते से ज्यादा समय हो गया है। इस दौरान आम जनता की समस्या भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और न ही आरबीआइ के स्तर पर नियमों को उलझाने का सिलसिला ही खत्म हो रहा है। पिछले तीन हफ्तों में आरबीआइ की तरफ से नोटबंदी को लेकर दर्जन भर नियम बनाये गये लेकिन हर नियम अपने ही विरोधाभासों से भरा हुआ है। कई नियमों को आरबीआइ अपने स्तर पर स्पष्ट नहीं कर रहा है बल्कि इसे किस तरह से लागू किया जाए, इसकी जिम्मेदारी बैंकों पर डाल दे रहा है। इस वजह से शादियों के लिए पैसा निकालने, जन धन खाते से निकासी, चालू खाते में पैसा जमा कराने संबंधी नए नियमों को लागू करने में बैंकों के पसीने छूट रहे हैं।

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अस्पष्ट नियमों की फेहरिस्त में आरबीआइ ने चालू खाते से जुड़े नियमों को भी जोड़ दिया है। चालू खाते में 500 व 1000 रुपये के पुराने नोटों को जमा करने की पाबंदी लगा दी गई है। लेकिन मामला यही खत्म नहीं हो रहा। बल्कि बैंकों को कहा गया है कि अगर उन्हें लगता है कि कोई वाजिब ग्राहक है तो उसके चालू खाते में पुराने नोट जमा कराये जा सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें आयकर विभाग से सत्यापित कराना होगा। ग्राहक को यह बताना होगा कि 10 नवंबर, 2016 के बाद से कितनी राशि उसने चालू खाते में जमा करवाई है। इसके बाद बैंक प्रबंधक के विवेक पर है कि वह कितनी अधिक राशि जमा करने की अनुमति देता है।

एक बैंक प्रबंधक ने बताया कि नोटबंदी के बाद आरबीआइ की तरफ से जितने नियम आये हैं, उन सभी में एक बात समान है कि वह किसी नियम को फूलप्रूफ नहीं बना रहा। मसलन, शादी के लिए रकम निकालने के नियम को एकदम खुला रखा हुआ है और फैसला करने की जिम्मेदारी शाखा प्रबंधक पर छोड़ी गई है। इसी तरह से बैंक खाते में नए नोट जमा कराने वाले ग्राहकों को निर्धारित सीमा से यादा राशि देने की छूट दी गई है। लेकिन जब बैंक मौजूदा सीमा के तहत ही राशि नहीं दे पा रहे हैं तो फिर इससे यादा की राशि कैसे दे सकते हैं। आरबीआइ के नए नियम की कॉपी लेकर ग्राहक बैंकों में पहुंच रहे हैं और यादा राशि की मांग कर रहे हैं।

नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के वाइस प्रेसिडेंट अश्वनी राणा का कहना है कि नियम तय करने के तरीके को आरबीआइ ने मजाक बना कर रख दिया है। सरकारी अधिकारी व राजनेता बैंक वालों को दोषी ठहरा रहे हैं लेकिन समस्या की जड़ में यह है कि आरबीआइ बैंकों को पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराने में पूरी तरह से असफल हो गया है। उसका खामियाजा बैंकों को भुगतना पड़ रहा है। बैंकों में रोजाना 250 से 300 स्टाफ सेवानिवृत्त हो रहे हैं लेकिन उनकी जगह कोई नहीं आ रहा। उस पर से बैंकों में जो भीड़ बढ़ रही है, उसके नियंत्रण में ही बैंकों की आधी शक्ति चली जा रही है। ऐसे में आरबीआइ के आधे-अधूरे नियमों से और यादा दिक्कतें पैदा हो रही हैं। इससे बैंकों को खासी दिक्कत हो रही है। जनता भी नियम बदलने से भारी परेशानी का सामना कर रही है।


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