आइबीसी का असर : 42 फीसद तक हो रही है फंसे कर्ज की वसूली, एनपीए का स्तर 11.2 फीसद से घट कर 9.1 फीसद पर आया
सकल एनपीए और शुद्ध एनपीए अनुपात में गिरावट के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संपत्ति गुणवत्ता सुधरी है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। तकरीबन सात वर्षो के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि देश का बैंकिंग सिस्टम एनपीए की फांस से बाहर आने लगा है। इसकी सबसे बड़ी वजह इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) यानी नया दिवालिया कानून है जिसकी वजह से 42.5 फीसद तक एनपीए यानी फंसे कर्जे की वसूली संभव हो पा रही है। फंसे कर्जे की वसूली के पुरानी व्यवस्थाओं (लोक अदालत, डीआरटी, सरफाएसी कानून) से महज 3.5 से 14 फीसद तक ही फंसे कर्जे की वसूली हो पा रही है। यही नहीं आइबीसी में मामले को सलटाने में वक्त भी कम लग रहा है। अब जबकि सरकार ने इस कानून में नए संशोधन कर दिए हैं तो पुराने कर्जे को वसूलने का यह तरीका और ज्यादा प्रभावशाली हो सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को देश के बैंकिंग सेक्टर के ट्रेंड व प्रोग्रेस पर अपनी ताजी रिपोर्ट पेश की है जो बताती है कि सितंबर, 2019 में बैंकों की तरफ से दिए गए कुल कर्जे का 9.1 फीसद ग्रॉस एनपीए (नॉन परफॉरमिंग एसेट्स-ग्राहकों के पास फंसा कर्ज) है। एक वर्ष पहले यानी सितंबर, 2018 में यह अनुपात 9.2 फीसद का था। जबकि मार्च, 2018 में यह 11.2 फीसद था। आरबीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक सात वर्षो बाद सात वर्षो बाद एनपीए के अनुपात में लगातार कमी हुई है। अगर शुद्ध एनपीए की बात करें तो यह भी इस दौरान 6 फीसद से घट कर 3.7 फीसद हो गया है।
आरबीआइ की रिपोर्ट ने इस देश के बैंकिंग सेक्टर के लिए एक शुभ संकेत करार दिया है और माना है कि एनपीए को पहचान करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। अब एनपीए की वसूली की प्रक्रिया जारी है।वसूली प्रक्रिया में सबसे अच्छी बात आइबीसी की वजह से आई है। वर्ष 2018-19 में 1.666 लाख करोड़ रुपये के 1135 मामले गये थे और इनमें 70,819 करोड़ रुपये की राशि वसूली जा सकी थी जो तकरीबन 42.5 फीसद है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसी काम के लिए गठित लोक अदालतों से महज 5.3 फीसद, ऋण वसूली प्राधिकरणों से 3.5 फीसद और सरफाएसी कानून से 14.5 फीसद एनपीए की ही वसूली हो पाती है। असलियत में हर तरह के एनपीए का अनुपात पहले से कम हुआ है।लेकिन क्या एनपीए के स्तर में कमी आने को देश के बैंकिंग सेक्टर को मजबूत माना जा सकता है? इस सवाल का जवाब अगर आरबीआइ की रिपोर्ट में खोजने की कोशिश की जाए तो सीधा सा उत्तर है नहीं।
एनपीए में कमी आने के बावजूद संचालन लागत का ज्यादा होना, वैश्विक हालात, आर्थिक मंदी, तकनीकी के स्तर पर आने वाली चुनौतियां, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, शहरी सहकारी बैंकों की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है और सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक के स्तर पर इन्हें सुधारने के लिए अभी लगातार कोशिश करनी होगी। आरबीआइ ने सरकारी बैंकों में हो रहे विलय को सही मानता है लेकिन यह भी कहता है कि अभी तकनीकी कंपनियों की तरफ से बैंकों के सामने जो चुनौतियां आ रही हैं उसके असर का भी आकलन करना होगा।