ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार अभी भी भारतीय बैंकों पर है NPA का दबाव
पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती नौ महीने (अप्रैल-दिसंबर 2018) के दौरान बैंकों का एनपीए घटकर 10.8 फीसद रहा जो उससे पिछले वित्त वर्ष (2017-18) की पूरी अवधि में 11.5 फीसद रहा था।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर फंसे कर्ज (एनपीए) और पूंजीगत कमी की समस्या से अभी भी दबाव में है। एजेंसी का कहना है कि पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती नौ महीने (अप्रैल-दिसंबर, 2018) के दौरान बैंकों का एनपीए घटकर 10.8 फीसद रहा, जो उससे पिछले वित्त वर्ष (2017-18) की पूरी अवधि में 11.5 फीसद रहा था। इसके अलावा इस वर्ष मार्च में खत्म वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने सरकारी बैंकों में 1,450 करोड़ डॉलर (एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा) की रकम का निवेश किया है।
इसके बावजूद फिच का मानना है कि बैंकों के पास उनकी वित्तीय जरूरतों और बाजार की मौजूदा स्थिति के हिसाब से पर्याप्त पूंजी नहीं है। एजेंसी के मुताबिक बैंकिंग सेक्टर के औसत एनपीए के मुकाबले कई सरकारी बैंकों में एनपीए का स्तर अभी भी बहुत ऊंचा है। एक बयान में फिच ने कहा, ‘फंसे कर्जो का निपटारा चालू वित्त वर्ष में बैंकों को थोड़ी राहत दे सकता है। इससे उनकी कमाई और संपत्ति की गुणवत्ता में भी सुधार हो सकता है। हालांकि फिच का मानना है कि सरकारी बैंकों को फिर भी सरकार से मदद की दरकार रहेगी।’
पिछले तीन वर्षो के दौरान बैंकिंग सेक्टर के प्रदर्शन को देखते हुए फिच ने पिछले दिनों भारत के ऑपरेटिंग एन्वायर्नमेंट को ‘बीबी प्लस’ की रेटिंग दी है, जो पहले ‘बीबीबी माइनस’ थी। इसमें एजेंसी ने बैंकिंग सेक्टर के मध्यम अवधि तक के आउटलुक को भी ध्यान में रखा है। रेटिंग के वक्त उसने एशिया की इसी मोर्चे पर ‘बीबीबी’ रेटिंग वाली अर्थव्यवस्थाओं की तुलना जीडीपी और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में की है।
पिछले दिनों फिच ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ), बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी), पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), बीओबी (न्यूजीलैंड), केनरा बैंक और बैंक ऑफ इंडिया (बीओआइ) की लंबी अवधि की इश्यूअर डिफॉल्ट रेटिंग ‘बीबीबी माइनस’ रखी थी। एजेंसी ने इन बैंकों के आउटलुक को स्थिर बताया था।
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