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फ्रॉड रोकने के बैंकों के दावों की खुली कलई, पांच वर्षों में नुकसान करीब चार गुना हुआ

सिर्फ ऑनलाइन धोखाधड़ी में ही इजाफा नहीं हो रहा बल्कि कर्ज वितरित करने या नकदी जमा कराने में होने वाले फ्रॉड भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

By Manish MishraEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 10:07 AM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 10:07 AM (IST)
फ्रॉड रोकने के बैंकों के दावों की खुली कलई, पांच वर्षों में नुकसान करीब चार गुना हुआ
फ्रॉड रोकने के बैंकों के दावों की खुली कलई, पांच वर्षों में नुकसान करीब चार गुना हुआ

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकारी क्षेत्र के बैंक चाहे जितनी भी सुरक्षित बैंकिंग व्यवस्था का बखान करें, हकीकत यह है कि वे बैंकिंग फ्रॉड यानी धोखाधड़ी को रोकने में एकदम विफल रहे हैं। सिर्फ ऑनलाइन धोखाधड़ी में ही इजाफा नहीं हो रहा, बल्कि कर्ज वितरित करने या नकदी जमा कराने में होने वाले फ्रॉड भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में देश के बैंकिंग सेक्टर में कुल 71,543 करोड़ रुपये के धोखाधड़ी मामले सामने आए हैं। यह रकम वित्त वर्ष 2014-15 में बैंकों में हुए 19,455 करोड़ रुपये के फ्रॉड के मुकाबले करीब चार गुना है। इसमें भी 90.2 फीसद हिस्सा सरकारी बैंकों का है। 

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बैंकिंग क्षेत्र का नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) स्वयं मान रहा है कि बैंकों में बड़े स्तर के धोखाधड़ी मामले नहीं रुक पा रहे हैं और इस तरह के अधिकांश फ्रॉड सरकारी बैंकों में ही हो रहे हैं। बैंकिंग ट्रेंड व प्रोग्रेस पर आरबीआइ की पिछले दिनों आई रिपोर्ट से साफ है कि धोखाधड़ी रोकने के लिए सरकारी बैंकों के स्तर पर बड़ी कार्रवाई की जरूरत है।

आरबीआइ ने कहा है कि सबसे ज्यादा घाटा लोन पोर्टफोलियो में हो रहा है। इसमें घटनाओं की संख्या और शामिल राशि का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। धोखाधड़ी के जरिये बैंकों को चूना लगाने में नामी-गिरामी कंपनियां भी शामिल हैं। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि जो कंपनियां कर्ज की रकम किसी और काम में लगा देती हैं, उनकी तरफ से बैंकों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। 

मसलन, कई कंपनियों ने मुख्य कंपनी के नाम पर कर्ज लिया है और फिर उसे अपनी दूसरी फर्जी कंपनियों में लगा दिया है। इसके लिए उन्होंने कर्ज देने वाले बैंकों से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट में भी नहीं लिया है। वर्ष 2018-19 में समूचे बैंकिंग सेक्टर को फ्रॉड से हुई 71,543 करोड़ रुपये की हानि में से 64,548 करोड़ रुपये की चपत कर्ज से जुड़े मामलों से ही लगी है। केंद्रीय बैंक के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष के दौरान बैंकिंग फ्रॉड की 6,801 घटनाओं में से 55.4 फीसद सरकारी क्षेत्र के बैंकों के हिस्से आई है जबकि इससे हुई हानि में 90.2 फीसद हिस्सा इन बैंकों का है। बड़े घोटाले (50 करोड रुपये से ज्यादा) में तो सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 91.6 फीसद है।

बहरहाल, आरबीआइ की रिपोर्ट बताती है कि बैंकों के स्तर पर लगातार तमाम दावे के बावजूद इनकी सुरक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने वाले लगातार सफल हो रहे हैं। अगर बैंकों की व्यवस्था दुरुस्त होती तो वर्ष 2014-15 में फ्रॉड से होने वाले नुकसान की जो राशि 19,455 करोड़ रुपये थी, वह पांच वर्षो बाद यानी 2018-19 में बढ़कर 71,543 करोड़ रुपये नहीं हो गई होती। इसी दौरान लोन मामलों में फ्रॉड की राशि 17,122 करोड़ रुपये से बढ़ कर 64,548 करोड़ रुपये हो गई।


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