विमान कंपनियों ने एटीएफ पर शुल्क घटाने का दबाव बढ़ाया
विमान कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल की तरह एटीएफ पर भी शुल्क घटाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। त्योहारी सीजन में घाटे की भरपाई की उम्मीद में बैठी विमानन कंपनियों को यात्रियों के रुख से झटका लगा है। मांग में अपेक्षित वृद्धि न होने से इस बार हवाई किराए तेवर नहीं दिखा पा रहे हैं। ऐसे में एक तरफ कंपनियां अगले माह किराए बढ़ने के आसार जताकर यात्रियों को एडवांस बुकिंग के लिए उकसा रही हैं। दूसरी तरफ उन्होंने पेट्रोल-डीजल की तरह एटीएफ पर भी शुल्क घटाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
बुधवार से नवरात्रों के साथ त्योहारी सीजन शुरू हो जाएगा। बावजूद इसके हवाई किराए ज्यादा नहीं बढ़े हैं। सोमवार को 10 अक्टूबर के लिए दिल्ली-मुंबई के बीच ज्यादातर विमानन कंपनियों का वन वे किराया 3000-4000 रुपये, जबकि रिटर्न टिकट 7000-9900 रुपये में था। महीने के आखिर तक लगभग यही स्थिति है। 27 अक्टूबर के रिटर्न टिकट 5900-8300 रुपये में उपलब्ध थे।
विमानन उद्योग के सूत्रों का कहना है कि इस स्थिति के लिए मांग में कमी और सीटों की अधिक उपलब्धता जिम्मेदार है। ‘उड़ान’ स्कीम के कारण अब ज्यादातर यात्री अग्रिम बुकिंग कराना पसंद करते हैं, जहां आधी सीटें 2500 रुपये में उपलब्ध हैं। यही वजह है एटीएफ की बढ़ती कीमत और डॉलर की तुलना में रुपये में गिरावट के बावजूद विमानन कंपनियां किराया बढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं।
सरकार ने पिछले सप्ताह पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में ढाई रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी। लगभग इतनी ही कटौती कई राज्यों ने अपने स्तर पर वैट घटाकर की थी। इससे जनता को प्रति लीटर पांच रुपये तक की राहत मिली थी। वहीं, विमान ईंधन अर्थात एयर टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) के मामले में उलटा हुआ। यहां सरकार ने उत्पाद शुल्क में राहत देने के बजाय सीमा शुल्क में पांच फीसद की बढ़ोतरी कर दी। इसका असर उन विमानन कंपनियों पर पड़ेगा जो आयातित एटीएफ खरीदती हैं। सूत्रों के अनुसार ऐसी कंपनियां अगले महीने से इसका बोझ यात्रियों पर डालना शुरू करेंगी।
इस समय भारत में एटीएफ के दाम 74,500 रुपये प्रति किलोलीटर के ऊपर चल रहे हैं। यह 2014 के बाद का उच्चतम स्तर है। इससे पहले 2014 में दाम 77,000 रुपये को पार कर गए थे। एटीएफ और रुपये की कीमतों ने विमानन कंपनियों की सेहत बिगाड़ दी है। विमानन कंपनियों की लागत में आधा हिस्सा ईंधन का होता है।