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कोरोना काल में नए नियमों से राहत चाहता है ऑटो उद्योग, सरकार से हो रही है लगातार वार्ता

केंद्र सरकार की तरफ से निर्धारित कई मानक वर्ष 2022 और वर्ष 2023 से देश की सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों को लागू करने हैं। अगले दो वर्षों के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से तैयार तीन नए नियम ऑटो कंपनियों को लागू करने हैं।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Tue, 18 May 2021 08:21 PM (IST)Updated: Tue, 18 May 2021 08:26 PM (IST)
कोरोना काल में नए नियमों से राहत चाहता है ऑटो उद्योग, सरकार से हो रही है लगातार वार्ता
Auto Industry Wants Relief from New Rules P C : Pixabay

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। कोरोना की दूसरी लहर में ऑटोमोबाइल कंपनियां सिर्फ ग्राहकों की कमी से ही नहीं जूझ रही हैं। इनके सामने दूसरी चुनौतियां कुछ कम नहीं है। बाजार से ग्राहकों के नदारद होने के साथ ही स्टील व दूसरी धातुएं लगातार महंगी हो रही हैं। इससे लागत बढ़ रही है और कंपनियों को कारों की कीमतें भी बढ़ानी पड़ रही हैं।

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फिर, अंतरराष्ट्रीय कारोबार के प्रभावित होने से चिप समेत कुछ दूसरे उच्च तकनीक वाले उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हो गई है। इन तीनों चुनौतियों से ऑटोमोबाइल कंपनियां पिछले वर्ष से ही दो-चार हैं। इसके साथ ही कंपनियों को एक नई चुनौती से भी पार पाना है। यह है फ्यूल माइलेज को बेहतर करने, सवारों की सुरक्षा को और मजबूती देने तथा नए उत्सर्जन मानकों (रीयल ड्राइ¨वग इमिशंस) को लागू करने की।

केंद्र सरकार की तरफ से निर्धारित कई मानक वर्ष 2022 और वर्ष 2023 से देश की सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों को लागू करने हैं। अगले दो वर्षों के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से तैयार तीन नए नियम ऑटो कंपनियों को लागू करने हैं। एक नियम इसी वर्ष 31 अगस्त से लागू होना है जिसके तहत हर कार में आगे की दोनो सीटों के लिए एयरबैग्स होने की अनिवार्यता है।

यह ऐसी जरूरत है जिस पर कंपनियां भी सरकार की इस सोच के साथ एकमत हैं कि सवारियों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। कंपनियों का कहना है कि इससे एंट्री लेवल की छोटी कारों की कीमतें भी 10-20 हजार रुपये तक बढ़ सकती हैं। कच्चा माल महंगा होने की वजह से कंपनियां पहले ही कीमतें बढ़ा चुकी हैं।

रीयल ड्राइविंग एमिशंस (आरडीई) के नए नियम के मुताबिक किसी कार के प्रदूषण उत्सर्जन का आकलन उसके सड़कों पर चलने के दौरान निकाला जाएगा। अभी तक कंपनियां एक प्रयोगशाला मानकों के हिसाब से उत्सर्जन का निर्धारण करती रही हैं जो सड़कों पर कार चलाने के दौरान उत्सर्जन से अलग होता है। यह नियम अप्रैल, 2023 से लागू होना है। कंपनियों का कहना है कि इस मानक के लिए उन्हें डीजल वाहनों में काफी निवेश करना होगा। अंतत: इसका बोझ भी ग्राहकों पर भी पड़ेगा।

इसी तरह से एक नियम फ्यूल एफिशिएंसी यानी कॉरपोरेट एवरेज फ्यूल इफिशिएंसी (केफ) को लेकर है। इसके तहत वर्ष 2022 से भारतीय कारों को और उन्नत करना होगा, ताकि उनका प्रदूषण उत्सर्जन घटे। इस नियम के मुताबिक वर्ष 2017 से वर्ष 2022 तक के लिए भारतीय वाहनों से कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन 130 ग्राम प्रति किमी निर्धारित किया गया था जिसे वर्ष 2022 के बाद घटाकर 113 ग्राम कर दिया जाएगा। कंपनियों को इसके लिए भी बड़ी मात्रा में नया निवेश करना होगा।

ऑटोमोबाइल कंपनियों का कहना है कि पिछले एक वर्ष से संकटग्रस्त कंपनियों को उक्त तीनों मानकों को लागू करने पर खासा काफी निवेश करना होगा। इससे लागत बढ़ेगी। कीमत बढ़ाने से ग्राहकों की संख्या और घट सकती है। इस बारे में ऑटोमोबाइल सेक्टर का संगठन सोसाइटी ऑफ इंडियन आटोमोबाइल इंडस्ट्री (सियाम) के अधिकारी केंद्र सरकार के अधिकारियों से लगातार बातचीत कर रहे हैं।

उद्योग जगत का सरकार से आग्रह है कि इन नए मानकों को लागू करने के लिए कंपनियों को कम से कम दो वर्ष का और समय दिया जाए। ऑटोमोबाइल उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि उत्सर्जन मानकों में सरकार का रवैया राहत देने का दिख रहा है। लेकिन सुरक्षा मानकों (खासतौर पर हर कार में ड्राइवर व आगे के पैसेंजर के लिए एयरबैग्स) को लेकर सरकार अपने नियम में बदलाव को तैयार नहीं दिख रही है।

पिछले हफ्ते ही केंद्र सरकार की एक उच्चस्तरीय समिति के समक्ष ऑटोमोबाइल उद्योग की तरफ से पेश एक प्रजेंटेशन में बताया गया है कि कोरोना की वजह से सेक्टर वर्ष 2017-18 के स्तर पर चला गया है। वर्ष 2021-22 में देश में पैसैंजर कारों की कुल बिक्री में 2.2 फीसद, वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में तकरीबन 21 फीसद, दोपहिया वाहनों की बिक्री में 13 फीसद और तीपहिया वाहनों की बिक्री में 66 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है।

वर्ष 2011 से वर्ष 2021 के दौरान देश में ऑटोमोबाइल बिक्री की औसत सालाना वृद्धि दर 1.8 फीसद रही है। जबकि वर्ष 2001-02 से वर्ष 2010-11 के दौरान सालाना औसत वृद्धि दर 12.8 फीसद की थी। अगर वर्ष 2015-16 से वर्ष 2020-21 की बात करें तो लगातार पांच वर्षों तक सालाना बिक्री में औसतन 1.9 फीसद की गिरावट हुई है।


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