स्थानीय 'लॉक' से 'डाउन' होगी इकोनॉमी, महामारी पर रोक के साथ ही इकोनॉमी की रिकवरी पर भी हो ध्यान: RBI
चालू वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा के फैसलों की चर्चा करते हुए दास ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर ने अनिश्चितता बढ़ा दी है। इससे सतर्क रहना होगा क्योंकि कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन से मांग प्रभावित होने की आशंका है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के लिए देश के कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने इस बारे में स्पष्ट आगाह किया है कि स्थानीय स्तर पर लगाए जा रहे लॉकडाउन से मांग पर उलटा असर होगा।
चालू वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा के फैसलों की चर्चा करते हुए दास ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर ने अनिश्चितता बढ़ा दी है। इससे सतर्क रहना होगा, क्योंकि कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन से मांग प्रभावित होने की आशंका है। इकोनॉमी के सामान्य होने पर भी असर होगा।
दास के इस कथन की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समीक्षा रिपोर्ट पेश करने के दौरान उन्होंने चार बार इसका जिक्र किया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि पहले के मुकाबले देश अब इन चुनौतियों से लड़ने को ज्यादा तैयार है।
डॉ. दास ने कहा कि पिछले वर्ष टीकाकरण की वजह से जो उम्मीद बनी थी, वह महामारी के बढ़ने से प्रभावित हुई है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में आम राय थी कि रेपो रेट (जिस दर पर बैंक आरबीआइ से कर्ज लेते हैं) को चार फीसद पर बनाए रखना चाहिए।
भी इस पर सहमत थे कि अर्थव्यवस्था में विकास की स्थिति मजबूत करने और कोविड-19 के असर को प्रभावहीन करने की जब तक जरूरत होगी, तब तक ब्याज दरों को लेकर उदारवादी रवैया ही बनाये रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि अब हमारी प्राथमिकता कोविड के प्रसार की रोकथाम के साथ इकोनॉमी को पटरी पर लाने की होनी चाहिए। इससे इकोनॉमी को संभालने में अब तक हुई प्रगति को बेहतर किया जा सकेगा।
कोविड के बढ़ते ताजा मामलों से हालात बदलते देख आरबीआइ ने बाजार में पर्याप्त तरलता (फंड) उपलब्ध कराने के लिए भी कई घोषणाएं की हैं। डॉ. दास ने कहा कि, बाजार में इतना फंड हमेशा रहेगा कि सभी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने और उद्योगों को कर्ज देने के बाद भी सिस्टम में कुछ अतिरिक्त राशि उपलब्ध रहे।
वित्तीय संस्थानों को 50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि मुहैया कराई गई है। राज्यों के नगदी प्रवाह को बनाए रखने के लिए की गई वेज एंड मीन्स व्यवस्था (डब्ल्यूएमए) के तहत दी जाने वाली राशि की सीमा 46 फीसद बढ़ाकर 47,010 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
कोरोना को देखते हुए राज्यों के लिए अतिरिक्त डब्ल्यूएमए की व्यवस्था की गई थी। उसकी अवधि भी छह महीने बढ़ा दी गई है। जरूरत होने पर इसमें और वृद्धि का भी आश्वासन दिया गया है। बाजार में तरलता बनाए रखने के लिए आरबीआइ ने पहली तिमाही में एक लाख करोड़ रुपये के बांड खरीदने का भी एलान किया है।
उद्योग जगत ने किया स्वागत
आरबीआइ की तरफ से इन घोषणाओं ने उद्योग जगत व इकोनॉमी के दूसरे हिस्सों में काफी राहत पहुंचाई है। देश के सबसे बड़े कर्जदाता एसबीआइ के चेयरमैन डीके खारा ने कहा कि ब्याज दरों को स्थिर रखने की उम्मीद पहले से की जा रही थी। लेकिन जरूरत के वक्त बाजार को रकम मुहैया कराने का केंद्रीय बैंक का वादा उद्योग जगत के लिए उत्साहवर्धक फैसला है। बीते वित्त वर्ष के लिए जीडीपी में आरबीआइ ने 7.5 फीसद गिरावट का जो अनुमान लगाया है, उससे पता चलता है कि बुरा वक्त बीत चुका है, लेकिन सतर्क रहने की जरूरत है।
कोटक महिंद्रा बैंक के प्रेसिडेंट (डेट कैपिटल मार्केट्स) सुजाता गुहाठाकुराता ने आरबीआइ के फैसलों का स्वागत करते हुए कहा कि तरलता उपलब्ध कराने की घोषणाओं से काफी राहत मिलेगी। एचडीएफसी बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट अभीक बरुआ ने कहा कि आरबीआइ उम्मीद से ज्यादा उदारवादी रवैया अपनाया है जो सराहनीय है। समय से पहले ब्याज दरों को बढ़ाया नहीं जाएगा, यह आश्वासन भी प्रशंसनीय है। अब ब्याज दरों के बढ़ने को लेकर अटकलें नहीं लगेंगी।