क्या है क्रिप्टोकरेंसी, जानिए
क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसी मुद्रा है जिसे डिजिटल माध्यम के रूप में निजी तौर पर जारी किया जाता है
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। किसी देश में लेनदेन के लिए प्रचलित नोट और सिक्कों को करेंसी कहते हैं। प्रचलित करेंसी या तो कागज की होती है या किसी धातु की। मसलन, भारत में रुपये के नोट और सिक्के। हाल के वषों में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार के बाद वर्चुअल करेंसी की परिकल्पना भी सामने आई है। उदाहरण के लिए बिटकॉइन, लाइटकाइन, नेमकाइन और पीपीकाइन। इस तरह की वर्चुअल करेंसी को क्रिप्टोकरेंसी कहते हैं।
दरअसल क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसी मुद्रा है जिसे डिजिटल माध्यम के रूप में निजी तौर पर जारी किया जाता है। यह क्रिप्टोग्राफी व ब्लॉकचेन जैसी डिस्ट्रीब्यूटर लेजर टेक्नोलॉजी (डीएलटी) के आधार पर काम करती है। सरल शब्दों में कहें तो ब्लॉकचेन एक ऐसा बहीखाता है जिसमें लेनदेन को ब्लॉक्स के रूप में दर्ज किया जाता है और क्रिप्टोग्राफी का इस्तेमाल कर उन्हें लिंक कर दिया जाता है। क्रिप्टोग्राफी सूचनाओं को सहेजने और भेजने का ऐसा सुरक्षित तरीका है जिसमें कोड का इस्तेमाल किया जाता है और सिर्फ वही व्यक्ति उस सूचना को पढ़ सकता है जिसके लिए वह भेजी गई है।
जब कोई कंपनी करेंसी शुरू करती है तो लिमिटेड कंपनियों के आइपीओ की तर्ज पर आइसीओ (इनिशियल कॉइन ऑफरिंग्स) संभावित खरीदारों को बेचती है और क्राउडफंडिंग कर बाजार से पूंजी जुटा लेती है। यहां यह समझना जरूरी है कि क्रिप्टोकरेंसी और रियल करेंसी में बड़ा अंतर है। मसलन, रियल करेंसी को जारी करने वाला केंद्रीय बैंक उसके भुगतान की गारंटी प्रदान करता है जबकि क्रिप्टोकरेंसी में ऐसा कुछ नहीं है। यही वजह है कि क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगाना बेहद जोखिम भरा माना जाता है। क्रिप्टोकरेंसी के रेट में तेजी से उतार-चढ़ाव आता है। उदाहरण के लिए हाल में बिटकॉइन के मार्केट कैपिटलाइजेशन में लगभग 200 अरब डॉलर की कमी आई। इसीलिए क्रिप्टोकरेंसी को लेन-देन और धनराशि रखने का विश्वसनीय माध्यम नहीं माना जाता। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक लगातार बिटकॉइन जैसी वर्चुअल करेंसी को लेकर चिंता प्रकट करते रहे हैं।
आरबीआइ का मानना है क्रिप्टोकरेंसी मौजूदा भुगतान सिस्टम को प्रभावित कर सकती है जिससे अंतत: मौद्रिक नीति के क्रियान्वयन पर असर पड़ेगा। एक खतरा यह भी है कि पूरा लेनदेन डिजिटल माध्यम से होने की वजह से इसके हैक होने का खतरा बना रहता है। ग्राहकों की समस्या और शिकायत के समाधान के लिए भी इसमें कोई तंत्र नहीं है। इसके अलावा क्रिप्टोकरेंसी के कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग जैसे अवैध गतिविधियों में भी इस्तेमाल होने की आशंका है। अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ इस बात की आशंका प्रकट कर चुकी है। बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआइएस) ने तो यहां तक कहा है कि क्रिप्टोकरेंसी एक तरह का बुलबुला है जो कभी भी फूट सकता है। वास्तव में यह पोंजी स्कीम की तरह ही है।
दुनियाभर में क्रिप्टोकरेंसी के नियमन के लिए कदम उठाए गए हैं। विश्व में बिटकॉइन के जितने लेनदेन होते हैं उनमें आधे जापान में किए जाते हैं। जापान ने सितंबर 2017 में क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज में ट्रांजैक्शंस को मंजूरी दी थी। नियम अमेरिका ने भी बनाए हैं लेकिन वहां इसे मंजूरी नहीं है। भारत में सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ही क्रिप्टोकरेंसी पर नजर रख रहे हैं। रिजर्व बैंक ने एक अंतर-विभागीय समूह का गठन किया है, जो डिजिटल करेंसी शुरू करने की संभावनाओं का अध्ययन करेगा। हालांकि भारत इस संबंध में क्या फैसला लेता है, यह आगे चलकर ही ज्ञात हो पाएगा। सरकार और रिजर्व बैंक का अब तक का रुख इनके खिलाफ है। सरकार की ओर से लोगों को इनसे दूर रहने के लिए कई बार आगाह किया जा चुका है।