अब तक नाकाम रहे NPA वसूली के सभी उपाय, बीते वर्षों से वसूली आंकड़ों में लगातार गिरावट
बीते कुछ वर्षों के NPA वसूली के आंकड़ों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। अर्थव्यवस्था के लिए नासूर बने फंसे कर्ज यानी एनपीए की वसूली के लिए इंसॉल्वेंसी एडं बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) को लेकर भले ही बड़ी उम्मीदें हों लेकिन हकीकत यह है कि एनपीए ऐसा मर्ज है जिसके इलाज के लिए अब तक किए गए नुस्खे नाकाम रहे हैं। हाल के वर्षों में एनपीए की वसूली के आंकड़े हकीकत बयां करते हैं। आइबीसी की शुरुआत भी कुछ खास उत्साहजनक नहीं है।
रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षो में लोक अदालतों, डिस्प्यूट रिजॉल्यूशन ट्रिब्यूनल (डीआरटी) और सरफेसी कानून का इस्तेमाल कर एनपीए की वसूलने की कोशिशें परवान नहीं चढ़ पाईं हैं। वर्ष 2012-13 में लोक अदालतों, डीआरटी और सरफेसी कानून के तंत्र के जरिये 10.44 लाख मामले सुलझाने का प्रयास हुआ जिनमें 1057 करोड़ रुपये राशि फंसे कर्ज की थी। इसमें से मात्र 233 करोड़ रुपये की फंसे कर्ज की राशि ही वसूल हो सकी। खास बात यह है कि बीते वर्षों में वसूली के इस आंकड़े में लगातार गिरावट हुई।
वर्ष 2016-17 में डीआरटी, लोक अदालतों और सरफेसी कानून के जरिये 22.61 लाख मामलों को सुलझाने का प्रयास हुआ जिनमें 2860 करोड़ रुपये कर्ज फंसा था। इसमें से मात्र 10 प्रतिशत फंसे कर्ज की वसूली ही हो पायी। एनपीए वसूली का यह रिकॉर्ड अब तक के उपायों की नाकामी दर्शाता है।
यही वजह है कि सरकार को दिवालियेपन पर कानून बनाना पड़ा। आइबीसी के जरिये फंसे कर्ज की वसूली को लेकर बहुत उम्मीदें हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में भी कहा गया है कि आइबीसी में हर उपाय के लिए समय सीमा निर्धारित है। इसलिए यह प्रभावी साबित होगा। हालांकि शुरुआती संकेत मिल रहे हैं कि फंसे कर्ज की वसूली में दिवालियेपन पर नया कानून भी बहुत उत्साहजनक परिणाम नहीं दे पाया है। दरअसल पहले चरण में फंसे कर्ज वाली जिन 12 कंपनियों की परिसंपत्तियां बेचकर कर्ज वसूली की प्रक्रिया शुरू की गयी है, वे मामले कई तरह के झमेले में फंस गए हैं। बैंकों के अधिकारी अब यह बात स्वीकार करने लगे हैं कि दिवालियेपन पर कानून से भी कुल फंसे कर्ज का एक चौथाई से अधिक वसूली होने के आसार नहीं है।