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कंपनियों के लिए आसान हुआ डिपॉजिट जुटाना

कंपनियों की ओर से जमा स्वीकार करने के नियमों में सरकार की तरफ से बदलाव के बाद डिपॉजिट लेना अब आसान हो गया है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Mon, 04 Jul 2016 09:31 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2016 09:46 PM (IST)
कंपनियों के लिए आसान हुआ डिपॉजिट जुटाना

नई दिल्ली, प्रेट्र : केंद्र सरकार ने कंपनियों की ओर से जमा (डिपॉजिट) स्वीकार करने के नियमों में बदलाव कर दिया है। इससे कंपनियों के लिए डिपॉजिट लेना अब और आसान हो जाएगा। इसके चलते स्टार्ट अप को फंड जुटाने में खास तौर पर मदद मिलेगी। इस बदलाव के अलावा सरकार ने कंपनियों को डिपॉजिट इंश्योरेंस के बिना 31 मार्च, 2017 तक जमा स्वीकार करने की भी अनुमति दे दी है। कंपनी कानून के तहत डिपॉजिट जुटाने के लिए बीमा होना जरूरी है।

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कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने इस संबंध में कंपनी (जमाओं की स्वीकृति) नियम में संशोधन किए हैं। कंपनी कानून के अंतर्गत कुछ नियमों में हुए इन ताजा बदलावों के चलते प्रक्रिया से जुड़ी औपचारिकताएं कम होंगी। इससे देश में कारोबार करना और सुगम हो जाएगा। अब स्टार्ट अप को कन्वर्टिबल नोट के जरिये किसी व्यक्ति से एक बार में मिली 25 लाख रुपये तक की रकम को कंपनी कानून के तहत डिपॉजिट नहीं समझा जाएगा। यह बदलाव उन्हीं कन्वर्टिबल नोट पर लागू होगा, जो इक्विटी शेयर में बदले जा सकते हैं या पांच साल के भीतर वापस भुगतान के योग्य हैं।

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यह कदम सरकार की देश में स्टार्ट अप को बढ़ावा देने की व्यापक कोशिशों के बीच उठाया गया है। मंत्रालय के मुताबिक, सभी कंपनियों को अपने वित्तीय विवरण में किसी डायरेक्टर से इस नोट के जरिये प्राप्त धनराशि की जानकारी देनी होगी। अलबत्ता यह प्रावधान न तो प्राइवेट कंपनियों पर लागू होगा और न ही एक लाख रुपये की न्यूनतम चुकता पूंजी वाली फर्मो पर।

सलाहकार फर्म कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स का कहना है कि ताजा संशोधनों से उद्योग जगत को खासी राहत मिलेगी, जो लिक्विडिटी की समस्या से जूझ रहा है। स्टार्ट अप को डिपॉजिट की श्रेणी में जुटाई गई रकम पर छूट की वजह से प्रक्रियागत आवश्यकताएं पूरी करने की दिक्कत कम हो जाएगी। इससे उनके लिए फंड जुटाना भी सुविधाजनक हो जाएगा। इसके अलावा भविष्य में वॉरंटी या मेंटीनेंस अनुबंध के तौर पर सेवा प्रदान करने के वादे के तहत अग्रिम के रूप में मिली कोई भी रकम को डिपॉजिट की श्रेणी में नहीं माना जाएगा। इसके लिए शर्त यह है कि सेवा मुहैया कराने की अवधि पांच साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।


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