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समझिए क्या है रेपो रेट और ब्याज दर को यह कैसे करता है प्रभावित

आरबीआइ के गवर्नर की अध्यक्षता वाली एमपीसी केंद्रीय बैंक की नीतिगत दरें यानी रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर तय करती है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 02 Apr 2018 10:49 AM (IST)Updated: Mon, 02 Apr 2018 10:09 PM (IST)
समझिए क्या है रेपो रेट और ब्याज दर को यह कैसे करता है प्रभावित
समझिए क्या है रेपो रेट और ब्याज दर को यह कैसे करता है प्रभावित

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। पांच अप्रैल को रिजर्व बैंक वित्त वर्ष 2018-19 की अपनी पहली मौद्रिक व कर्ज नीति की घोषणा करेगा। आप अक्सर अखबार में पढ़ते हैं कि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट घटाई, होम लोन और कार लोन होंगे सस्ते। रेपो रेट बढ़ी, महंगा होगा कर्ज। आखिर ये रेपो रेट क्या है? ब्याज दरों से इसका क्या रिश्ता है? महंगाई और विकास दर को यह कैसे प्रभावित करता है? ‘जागरण पाठशाला’ के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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आरबीआइ के गवर्नर की अध्यक्षता वाली ‘मौद्रिक नीति समिति’ (एमपीसी) केंद्रीय बैंक की नीतिगत दरें यानी रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर तय करती है। सरकार ने वित्त विधेयक 2016 के जरिये भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 45जेडबी में संशोधन कर एमपीसी के गठन का प्रावधान किया है। अध्यक्ष सहित एमपीसी में कुल छह सदस्य होते हैं। तीन आरबीआइ से और तीन सरकार के प्रतिनिधि। सदस्यों का कार्यकाल चार साल का होता है। नियम के मुताबिक एमपीसी की एक साल में कम से कम चार बैठक होनी चाहिए। फिलहाल एमपीसी की साल में छह बैठक होती है।

आरबीआइ बैंकिंग क्षेत्र का नियामक है, लेकिन यह काम व्यावसायिक बैंकों की तरह की करता है। मसलन, यह सरकारी और व्यावसायिक बैंकों के लिए बैंकर का काम करता है। उन्हें उधार देता है, उनकी धनराशि जमा करता है। यह ‘लेंडर ऑफ लास्ट रिसॉर्ट’ होता है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई बैंक संकट में है और उसे कहीं से उधार नहीं मिल रहा है तो आरबीआइ उसे उधार देगा।

सीआरआर और एसएलआऱ

बैंकों के पास चालू खाते, बचत खाते और फिक्स्ड जमा खाते के रूप में जितनी धनराशि जमा (नेट डिमांट एंड टाइम लायबिलिटी) होती है, उसका एक निश्चित हिस्सा उन्हें सीआरआर (कैश रिजर्व रेश्यो) के रूप में रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। फिलहाल सीआरआर की दर चार फीसद है। बैंकों को उनकी नेट डिमांड एंड टाइम लायबिलिटी यानी शुद्ध मांग और समय देयताओं का एक निश्चित हिस्सा सरकारी सिक्योरिटी मसलन बांड, सोने इत्यादि में निवेश करना होता है, उसे एसएलआर (स्टैच्युटरी लिक्विडिटी रेश्यो) कहते हैं। फिलहाल इसकी दर 19.5 फीसद है। सीआरआर व एसएलआर के जरिये आरबीआइ यह सुनिश्चित करता है कि बैंकों की जमा राशि सुरक्षित असेट्स में रहे। एसएलआर की दर घटने या बढ़ने से निजी क्षेत्र को उधार देने के लिए बैंकों के पास उपलब्ध धनराशि पर असर पड़ता है। अगर यह दर बढ़ती है तो बैंकों के पास कर्ज के लिए कम राशि उपलब्ध होती है।

ये है बेस रेट और एमसीएलआर

बेस रेट वह दर होती है, जिसे आरबीआइ तय करता है और इससे नीचे बैंकों को ग्राहकों को उधार देने की अनुमति नहीं होती। फिलहाल बेस रेट 8.65 से 9.45 फीसद है। हालांकि अब इसकी जगह एमसीएलआर (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लेंडिंग रेट) की व्यवस्था एक अप्रैल, 2016 से प्रभाव में आ गई है। बैंक आरबीआइ की अनुमति के बगैर एमसीएलआर से नीचे लोन नहीं दे सकते। एमसीएलआर की दर 7.80 से 7.95 फीसद है।

यहां जानिए क्या है रिवर्स रेपो रेट

रिवर्स रेपो रेट वह दर है, जिस पर आरबीआइ बैंकों से जमाराशि लेता है। उदाहरण के लिए किसी बैंक के पास अगर किसी दिन अतिरिक्त नकदी आ गई तो उसे वह आरबीआइ में जमा कर देगा, जिसके बदले उसे रिवर्स रेपो रेट के बराबर ब्याज मिलेगा। रिवर्स रेपो रेट हमेशा रेपो रेट से कम होती है। फिलहाल रिवर्स रेपो रेट 5.75 फीसद है। ‘लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी’ के जरिये बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ाने या घटाने के लिए आरबीआइ इन दोनों दरों का सहारा लेता है। रेपो रेट जब बढ़ती है तो कर्ज महंगा हो जाता है, क्योंकि बैंकों को उधार लेने के लिए अधिक राशि चुकानी पड़ती है। इसलिए वे होम लोन, पर्सनल लोन, कार लोन या कारोबार के लिए लोन लेने वाले ग्राहकों से अधिक दर वसूलते हैं। आरबीआइ रेपो रेट तब बढ़ाता है, जब महंगाई दर ऊपर जा रही होती है। रेपो दर को बढ़ाकर आरबीआइ सिस्टम में नकदी घटाकर मांग को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। दूसरी ओर जब महंगाई काबू में रहती है तो आरबीआइ विकास को बढ़ावा देने के लिए रेपो रेट घटा देता है, जिससे कर्ज सस्ता हो जाता है और सिस्टम में मांग बढ़ जाती है।

ऐसे समझें रेपो रेट

बैंकों को जब नकदी की जरूरत पड़ती है तो वे रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं। आरबीआइ इस अल्पावधि उधारी (ओवर नाइट) के लिए बैंकों से जिस दर पर ब्याज वसूलता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। आरबीआइ समय-समय पर इसकी दरें फिक्स करता है। फिलहाल रेपो रेट छह फीसद है। आरबीआइ ‘लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी’ के तहत बैंकों को रेपो रेट पर उधार देता है। हालांकि इसके लिए बैंकों को सरकारी सिक्योरिटी जैसे बांड आरबीआइ के पास कोलेटरल के रूप में रखने पड़ते हैं।


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