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एक कहावत है कि पैर की मोच और छोटी सोच आगे बढ़ने नहीं देती. ये कहावत सौ फीसदी सही है पर आश्चर्य की बात ये है कि ज्यादातर लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते. मैंने देखा है कि 90 % लोग अंदरूनी चोट को मामूली मोच समझकर नजरअंदाज कर देते है, उनमें से कई लोगों को इस असावधानी के कारण बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है. जब कोई बाहरी चोट लगती है तो घाव देखकर हमें उसकी गंभीरता का अंदाजा हो जाता है, फ्रैक्चर होने पर और हड्डी टूटने पर भी कई बार देखकर समझ में आ जाता है. लेकिन अंदरूनी चोट (ऐसी चोट जिसमें खून नहीं निकलता, दर्द, सूजन या लचक आती है) लगने पर देखकर ये समझ नहीं आता कि चोट कितनी गंभीर या गहरी है?
चोट से हड्डी या जोड़ के किस हिस्से को कितना नुकसान हुआ है. ऐसे में ज्यादातर लोग चोट की गंभीरता समझे बिना अपनी मर्जी से इलाज शुरू कर देते है. कोई पहलवान के पास जाकर मसलने लगता है, कोई गर्म पानी से सेक शुरू कर देता है तो कोई मोटी रोटी से सिकाई शुरू कर देता है. मेरे पास ऐसे भी कई पेशेंट्स आते हैं, जिन्होंने गर्म ईंट से सिकाई कर ली थी. इन सबके कारण कई बार साधारण चोट गंभीर बन जाती है. इनसे आराम तो मिलता नहीं उलटा तकलीफ कई गुना बढ़ जाती है. कई बार लोग अपनी लापरवाही से मामूली दवाई, आराम और फिजियोथेरेपी से ठीक होने वाली लिगामेंट इंज्यूरी को भी इतना गंभीर बना लेते है कि सर्जरी की नौबत आ जाती है. इसलिए छोटी सी अंदरूनी चोट को भी छोटा ना समझे.
इसलिए घुटने, कंधे, कोहनी, कलाई या पंजे में अंदरूनी चोट लगे तो प्लीज खुद डॉक्टर बनने की कोशिश ना करें. चोट लगने या किसी भी अन्य कारण से कलाई, कंधे, कोहनी, घुटने या पंजे में लगातार दर्द, सूजन या लालपन रहता हो, चलने में लचक आती हो, जोड़ अटकते हो, टक-टक की आवाज आती हो, किसी ख़ास जगह दर्द रहता हो, हाथ ऊपर करने में तकलीफ होती हो, सीढ़ियां चढ़ने उतरने में पैर उतरने का डर लगता हो तो प्लीज इसे अनदेखा ना करें और खुद अपना इलाज करने की कोशिश भी ना करें. किसी नीम हकीम के पास जाने की जगह विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाए. सही समय पर सही सलाह और उपचार आपको भविष्य की कई तकलीफों से बचा लेगा.
Article by Renowned Arthroscopy Surgeon & Sports Medicine Consultant Dr. Abhishek Kalantri, Indore
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे तथ्य या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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