भगवान परशुराम जातिवादि नहीं
भगवान परशुराम के विषय में कहा गया है कि ब्राहमण होकर अत्यधिक क्रोधित स्वभाव के थे। पिता के विचारों से भिन्नता होने के कारण घर त्याग दिया। अन्याय सहन करना पसंद नहीं था। अत्याचार एवं शोषण के विरूध हथियार उठा लेना चाहिए। अन्त में विलम्ब से उनके पिता कुछ सहमत हुए लेकिन पूर्ण रूप से नहीं।
2-कम सेना होने पर दुश्मनों की अधिक सेना से किस प्रकार आक्रमण किया जाये उनकी कुशलता का परिचायक है?
3-महिलाओं का आदर, सम्मान किस प्रकार किया जाता है? यह भी बताने का प्रयास किया गया है। कोई कितना भी दुश्मन क्यों न हो ?यदि कोई महिला या स्त्री सामने आ जाये तो कभी भी हथियार नहीं उठाने चाहिए व शत्रु को चेतावनी देते हुए छोड़ देना चाहिए।
4-कभी भी ऊंची छोटी जाति का भेदभाव नहीं किया। अपितु विष्णु पुराण के अनुसार जब नदी किनारे श्रवण कुमार से पानी पीने के लिए मांग की तो श्रवण कुमार उनको पहचान नहीं पाये ओर अपना परिचय देते हुए श्रवण कुमार न कहा कि -“मैं एक छोटी जाति की मां से जन्मा हूं और आप वेश-भूषा सेकिसी उच्च जाति व ऋषि लगते हैं।”
परशुराम ने टोकते हुये कहा कि “मां कभी छोटी जाति की नहीं होती है,मां तो मां होती है। अपने माता पिता से मिलवाओ, उनके चरण स्पर्श करने की अभिलाषा है। श्रवण कुमार ने कहा ‘यह मेरे माता पिता हैं जिनको दिखाई नहीं देता है। उनको तीर्थ यात्रा पर लेकर पेदल जा रहा हूं। गरीब होने के कारण वाहन का खर्च सहन नहीं कर सकता हूं ।
भगवान परशुराम ने श्रवण के माता पिता के चरण स्पर्श किया। श्रवण के माता पिता को जब ज्ञात हुआ कि स्वयं भगवान परशुराम आये हैं। अत्यन्त गद-गद हुए। भगवान परशुराम ने श्रवण कुमार को आशीर्वाद दिया कि यात्रा मंगलमय हो व जब तक संसार रहेगा तेरा नाम अमर रहेगा।
इस तरह भगवान परशुराम ने महिलाओं का सम्मान, संस्कारों का आदर, अपनी कम सेना होने पर युध किस प्रकार किया जाता है? प्रबंधन करना भी सिखाता है।
अरविन्द कुमार शर्मा
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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