blogs of prabhat pandey
- 11 Posts
- 1 Comment
लरजती लौ चरागों की
यही संदेश देती है
अर्पण चाहत बन जाये
तो मन अभिलाषी होता है
बदलते चेहरे की फितरत से
क्यों हैरान है कैमरा
जग में कोई नहीं ऐसा
जो न गुमराह होता है
भरोसा उगता ढलता है
हर एक की सांसो से
तन मरता है एक बार
आज ,जमीर सौ सौ बार मरता है ||
उसी को मारना ,फिर कल उसे खुदा कहना
न जाने किसके इशारे से
ये वक्त चलता है
नदी ,झीलेँ ,समुन्दर ,खून इन्सानों ने पी डाले
बचा औरों की नज़रों से
वो अपराध करता है
आज ,जीवन की पगडंडी पर
सत चिंतन हो नहीं पाता
तृष्णा का तर्पण करने पर ही
तन मन काशी होता है ||
‘प्रभात’ कैसी है यह मानवता ,जिसमें मानवता का नाम नहीं है
होती बड़ी बड़ी बातें ,पर बातों का दाम नहीं है
मजहब के उसूलों का उड़ाता है वह मजाक
डंके की चोट पर कहता ,भगवान नहीं है
देखो नफ़रत की दीवारें ,कितनी ऊँची उठ गईं
घृणा द्धेष की ईंटे ,आज मजबूती से जम गईं
खोटे ही अपने नाम की शोहरत पे तुले हैं
अच्छों को अपने इल्म का अभिमान नहीं है
कहीं भूंखा है तन कोई ,कहीं भूंख तन की है
पुते हैं सबके चेहरे ,यह कैसा धुआँ है|
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।
Read Comments