प्रभात
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कवि चंद की कविता ऐसी थी।
मुर्दे भी सुनकर फड़क उठें।।
चंद पृथ्वीराज का सेनापति,
दरबार में था दरबारी कवि।
कविता पढ़े जब युद्ध भूमि में ,
सैनिकों की भुजायें फड़क उठें।।
पृथ्वीराज गोरी का बंदी ,
पट्टी बंधी थी आँखों पर।
कवि चंद का दोहा सुनकर ,
तीर चलाया था गोरी पर।।
कवि चंद की कविता ऐसी थी।
मुर्दे भी सुनकर फड़क उठें।।
+Asharfi Lal Mishra*
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट काम किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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