बच्चों के सबसे पसंदीदा कैरेक्टर्स में शुमार मोगली, बलू और बघीरा को एक सदी से भी पहले गढ़ा गया था। बॉम्बे में जन्मे लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने 1894 में द जंगल बुक लिखी थी। इस कहानी पर कई टीवी सीरीज, फीचर फिल्म और एनीमेशन फिल्में बन चुकी हैं। नोबेल विजेता किपलिंग की जयंती पर जानते हैं उनकी जिंदगी के बारे में।
रुडयार्ड ने अखबारों में नौकरी से शुरुआत की
ब्रिटिश काल के बॉम्बे में 30 दिसंबर 1865 को प्रोफेसर जॉन लॉकवुड किपलिंग के घर रुडयार्ड किपलिंग का जन्म हुआ। रुडयार्ड ने अपने बचपन के 5 साल भारत में बिताए और फिर उन्हें पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। रुडयार्ड 17 साल की उम्र में 1882 में बॉम्बे वापस आ गए। इस दौरान उन्होंने कुछ अखबारों में नौकरी करते हुए अपनी लेखन शैली को मजबूत किया।
मुश्किल भरे दिनों ने लेखन की ओर मोड़ा
इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान रुडयार्ड किपलिंग होलोय फैमिली के साथ रहे। होलोय फैमिली की प्रमुख महिला मिस होलोय का रुडयार्ड के प्रति बर्ताव अच्छा नहीं था। रुडयार्ड अकेले पड़ गए और उनकी दोस्ती किताबों से हो गई। बाद में उन्होंने यादों को किस्सों में तब्दील करना शुरु कर दिया। बचपन से जुड़े किस्सों और शरारतों को उनकी किताबों और लेखनी में महसूस भी किया जा सकता है।
द जंगल बुक की कहानी में गढ़े मोगली और बघीरा
रुडयार्ड किपलिंग ने द जंगल बुक लिखने से पहले कई छोटी कहानियों और कविताओं के संकलन लिख चुके थे। 1894 में उन्हें द जंगल बुक लिखी। जंगल बुक लिखे हुए एक सदी से भी ज्यादा वक्त बीत चुका है, लेकिन आज भी जंगल बुक की कहानी और मोगली, बलू, बघीरा की दोस्ती बच्चों में लोकप्रिय है। जंगल बुक की टीवी सीरीज का टाइटल सांग ‘जगल जंगल बात चली है’ लोगों की जुबान पर चढ़ गया था।
साहित्य का नोबेल जीतने वाले 7वें लेखक बने
रुडयार्ड किपलिंग ने कई दर्जनों नॉवेल, शॉर्ट स्टोरी कविताएं लिखी हैं। कई देशों की यात्रा करने वाले रुडयार्ड की रचनाओं में भारतीय जीवनशैली की झलक सर्वाधिक देखने को मिलती है। रुडयार्ड किपलिंग को साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए 1907 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। नोबेल पाने वाले वह दुनिया के 7वें साहित्यकार थे। 18 जनवरी 1936 में रुडयार्ड किपलिंग ने लंदन में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।…NEXT
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