पूरी दुनिया इन दिनों सबसे बड़े संकट कोरोना वायरस से जूझ रही है। अभी महामारी से उबरने का उपाय विश्व खोज नहीं पाया है और वैज्ञानिकों ने एक नए संकट के संकेत दे दिए हैं। वैश्विक इकोलॉजिकल रिपोर्ट में बताया गया है कि आने वाले कुछ सालों के दौरान भयावह स्थिति पैदा होगी। यह संकट दुनियाभर के 120 करोड़ लोगों को अपना घर और इलाका छोड़ने को मजबूर कर देगा।
पारिस्थितिक खतरों के विश्लेषण में चौंकाने वाले खुलासे
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक तेजी से बढ़ती जनसंख्या, घटते भोजन और जलस्रोत, बदलते परिवेश और बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुनियाभर के 100 करोड़ लोगों की जिंदगी पर संकट मंडरा रहा है। वैश्विक पारिस्थितिक खतरों के एक नए विश्लेषण में बताया गया है कि अगले 30 सालों में इन लोगों को पानी और खाने की किल्लत, बढ़ती गर्मी के कारण अपने मौजूदा इलाके छोड़कर पलायन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
2050 तक दुनिया की आबादी 10 अरब होने का अनुमान
इंस्टीट्यूट आफ इकोनॉमिक एंड पीस (IEP) की रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक पूरी दुनिया की आबादी 10 अरब तक पहुंच जाएगी। जबकि, मौजूदा आबादी तकरीबन 7.8 अरब है। बढ़ी आबादी के कारण भोजन और पानी की किल्लत शुरू होगी जो लोगों के बीच टकराव का कारण बनेगी। अगले 30 सालों में पारिस्थितिक स्थितियों में व्यापक बदलाव होने का अनुमान है।
अगले 30 साल में दुनिया देखेगी 3 बड़े बदलाव
IEP के विश्लेषण के अनुसार अगले 30 सालों में पूरी दुनिया में 3 बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। जिनमें, पहला खाद्य असुरक्षा, दूसरा पानी की कमी और तीसरा बदलाव जनसंख्या वृद्धि के रूप में सामने आएगा। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़, सूखा, चक्रवात के अलावा समुद्र के बढ़ते जलस्तर और तापमान में बड़े पैमाने पर उछाल देखा जाएगा।
अफ्रीका, सेंट्रल एशिया और मिडिल ईस्ट पर संकट
रिसर्च के मुताबिक सबसे ज्यादा असर उप-सहारा अफ्रीका, सेंट्रल एशिया और मिडिल ईस्ट के देशों में पर पड़ने वाला है। इन इलाकों में बढ़ती आबादी के कारण रहने की जगह कम पड़नी शुरू होगी, खाने, पानी की किल्लत होगी और गर्मी में बढ़ोत्तरी के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। इन इलाकों के कमजोर हिस्सों में रहने वाले करीब 120 करोड़ लोग 2050 तक पलायन के लिए मजबूर हो जाएंगे।
विकसित देशों में बढ़ जाएगी शरणार्थियों की संख्या
इंस्टीट्यूट आफ इकोनॉमिक एंड पीस के संस्थापक स्टीव किल्लेल के मुताबिक बदलती स्थिति का बड़ा सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव न केवल विकासशील देशों बल्कि विकसित देशों पर भी पड़ेगा। बड़े पैमाने पर पलायन से सबसे अधिक विकसित देशों में शरणार्थियों की संख्या बढ़ जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक तुलनात्मक रूप से पारिस्थितिक कारकों और संघर्ष के कारण 2019 में लगभग 3 करोड़ लोगों को पलायन का दंश झेलना पड़ा है।…NEXT
More than 1 billion people face displacement by 2050: report https://t.co/wMKA0GUyjO pic.twitter.com/NFWeiOam1o
— Reuters (@Reuters) September 9, 2020
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