उत्तर प्रदेश के दो जिले अपनी पहचान हासिल करने की वजह से खूब सुर्खियों में हैं। पिछले साल बरेली का झुमका मिलने की खबर खूब चर्चा में रही थी। अब पीलीभीत जिले की पहचान बांसुरी बरसों बाद उसे मिल गई है। पीलीभीत की बनी बांसुरी की दुनियाभर में धाक रही है।
90 के दशकों से मांग रहे थे झुमका
1966 में आई फिल्म मेरा साया में अभिनेत्री साधना पर फिल्माया गया गीत झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में… इतना लोकप्रिय हुआ कि यह बरेली शहर की पहचान का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया। बरेली के लोगों ने 90 के दशक में झुमके को शहर की पहचान के तौर पर स्मारक बनाने की मांग शुरू कर दी थी।
बरेली को बरसों बाद मिला झुमका चौका
बरेली शहरवासियों की मांग को देखते हुए आखिरकार 2020 में बरेली शहर जीरो प्वाइंट पर झुमके का स्मारक बना दिया गया। दिल्ली-बरेली राजमार्ग 24 पर बने इस झुमका स्मारक को झुमका तिराहा के नाम से जाना जाता है। झुमके की ऊंचाई 14 फीट है और इसे बनाने में पीतल और तांबे का इस्तेमाल किया गया है। 200 मीटर दूसर दिखने वाले इस झुमके की लागत करीब 18 लाख रुपये आई है।
पीलीभीत को मिली उसकी पहचान
बरेली को उसका झुमका स्मारक के रूप में मिलने के बाद पीलीभीत में उसकी पहचान बांसुरी के लिए भी स्मारक बनाने के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों ने जोर पकड़ लिया। फरवरी 2021 में पीलीभीत को उसकी खोई पहचान बांसुरी बतौर स्मारक मिल गई है। करीब 6 सौ किलो मेटल से बनी इस बांसुरी को शहर के प्रवेशद्वार पर स्मारक के तौर पर स्थापित किया गया है।
जिले की पहचान है बांसुरी
वसंत पंचमी के दिन बांसुरी स्मारक को बांसुरी चौक के नाम से शुरू किया गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आजादी के बाद के वर्षों और उससे पहले से पीलीभीत में बांसुरी निर्माण हो रहा था। यहां की बनी बांसुरी की देश ही बल्कि दुनियाभर में धाक थी। उस वक्त करीब 2500 बांसुरी कारीगर शहर में थे। पीलीभीत की मशहूर बांसुरी के चलते इस जिले को बांसुरी नगरी भी कहा जाता है।
After #Bareilly got its famous 'jhumka', it is now Pilibhit that has got its '#BansuriChowk' that showcases the district's connection with the manufacturing of flutes. pic.twitter.com/ajIugr4BKr
— IANS Tweets (@ians_india) February 17, 2021
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