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उम्रतिथि की फुलझड़ी और अब चिटठी बम की गूंज से पूरा सियासी महकमा हिला हुआ है । सेनाध्यक्ष वीके सिंह के खुलासे की फुसफसाहट से अभी तक तो सिर्फ सरकार की ही नाक में दम हुआ था पर एक अंग्रेजी अखबार इंंडियन एक्सप्रेस के सनसनीखेज खुलासे ने इस पूरे मामले का सूरज ही पशिचम से उगा दिया है। संबंधित अखबार के अनुसार जनरल के जनवरी में हुए फैंसले वाले दिन सेना की दो टुकडि़यां दिल्ली की धरती पर कूच करने को बेताब थीं, इस वाकये ने आनन-फानन में सरकार से कर्इ बयान उगलवा लिए जिसमें कि एक ही बात को तोड़-मरोड़ के पेश किया गया है कि ये महज एक अभ्यास मात्र था। बेहतर होगा, कि इस कदम को किसी अलग नजरिए से ना देखा जाए । पर आम जनता में इस तरह के प्रश्न उठना लाजिमी हैैैैं कि क्या सेना में अभी तक अभ्यास हुए तो मीडिया ने इसी तरह की प्रतिकि्रया दी । रक्षा सचिव मलेशिया में थे और सेना का इतना बड़ा फैंसला बिना किसी उच्च ओहदे वाले अधिकारी से पूछे बिना ही ले लिया गया। और यदि ये अभ्यास ही था तो इस दिलेरी का लक्ष्य दिल्ली ही क्यों था। सच तो यह है कि कुछ वर्षों से केंद्र सरकार ने जिस तरह देश के अहम मामलों में गंभीरता नहीं बरती है उससे जनता को यह पचाना मुशिकल हो गया है कि इन सफेद महलों के अंदर क्या चल रहा है। एक तरफ तो हम सैन्य उपकरणेां के सबसे बड़े खरीददार का तमगा लिए खुशी से फूल रहे हैं , और दूसरी ओर सरकार सेना के बीच प्राइमरी स्कूल के बच्चों जैसी ठनाठनी का भी नजारा देख रहे हैं। इन सब बातों से परे एक बात ये भी है कि अभी पिछले साल ही में हमने सीरिया-अरब के हुक्मरानों को सेना के हाथों मसलते देखा है तो क्या हम अपना दिल भी उन देशों के नागरिकों की तरह थाम के बैठ जाएं और भारत में होने वाले एक असामान्य बदलाव के साक्षी बनें।
मयंक दीक्षित
आम इंसान।
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