Social Issues
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उसका चेहरा बता रहा था मारा है भूख ने।
सरकार कह रही है कुछ खा के मर गया है।।
मुज्जफरपुर रेलवे स्टेशन पर उस एक साल के बच्चे का दूध पिलाने के लिए अपनी माँ (अरविना खातून) पर पड़े चादर को बार-बार हटाना क्या बिचलित नहीं करता है आपको? उसे क्या पता की वो चादर जिसे हटाने का प्रयास वो कर रहा है चादर नहीं कफ़न है असल मे। माँ से मदद न मिल पाने की स्थिति में उसी अरविना खातून के दूसरे तीन वर्षीय बच्चे को पानी के लिए शायद तड़पते नहीं देखा आपने उसी स्टेशन पर वरना अंतड़ियाँ मुँह को आ गई होती श्रीमान।
आपने शायद उरेज खातून की मानसी स्टेशन पर पड़ी वो लाश नहीं देखी? स्ट्रेचर की अनुपस्थिति में ऐसे ही प्लेटफार्म पर पड़ी उस महिला की लाश हमे इस बात का एहसास दिलाती है श्रीमान की हम कितने समीप हैं विश्वगुरु बनने की राह पे?
विशिष्ठ महतो ने दानापुर रेलवे स्टेशन पर दम तोड़ दिया एक लम्बी कतार है ऐसे श्रमिक ट्रेनों से यात्रा करने वाले मजदूरों की। ये सारी मौतें श्रमिक ट्रेन से यात्रा के दौरान भूख से हुई हैं जो की शर्मनाक है।
रेल मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एक श्रमिक ट्रेन को चलाने में सरकार का करीब-करीब 80 लाख खर्चा आता है जो सरकार इन श्रमिकों के लिए 80 लाख की ट्रेन चला सकती है तो क्या उनके लिए 32 रूपये प्रतिव्यक्ति के हिसाब से पूरी ट्रेन के मजदूरों के लिए 38400 खाने के नाम पर खर्च नहीं कर सकती?
रिश्ते खूब निभाए लेकिन, क्यों मझधार में हमको छोड़ दिया?
जिस राह चले थे ठीक था फिर, वो राह भला क्यों मोड़ दिया?
विश्वास बहुत था हमको तुम पर, अब माफ़ नहीं कर पाएंगे!
पाला वो भरम जो हमने था, सुन्दर वो भरम क्यों तोड़ दिया?
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।
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