वीरभूमि बुंदेलखंड में श्रृंगार के लिए उद्दीपक माने जाने वाले सावन गीतों में भी ओज हावी रहता है। पूरे अंचल में झूला झूलते समय महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले राछरा गीतों की उत्पत्ति का केंद्र जालौन जिला है। अमान सिंह का राछरा सबसे ज्यादा गाया जाता है जिसका मुखड़ा इस तरह है ‘सदा न तुरैया फूलें अमाना जू, सदा न सावन होये, सदा न राजा रण छेड़ें, सदा न जीवन होय।
इंटर कालेज परिसर में बनाया गया प्रान सिंह का स्थान जहां सावन के महीने में पूजा की जाती है।
लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद कुमुद ने बताया कि युद्ध के लिए ललकारने वाला उक्त राछरा गीत एट के निकट अकोढ़ी गांव से संबंधित है। पन्ना रियासत के सोभा सिंह की पुत्री सुभद्रा अकोढ़ी के प्रान सिंह धंधेरे को ब्याही थी। सावन का महीना आ गया। सुभद्रा का भाई अमान सिंह उसे लेने प्रान सिंह के यहां पहुंचा। वहां उसका पूरा स्वागत सत्कार किया गया। फिर चौपड़ की बाजी जमी जिसमें अमान प्रान सिंह से हार गया। साले जीजा के मजाक की परंपरा के चलते प्रान सिंह ने अमान सिंह से यह कह दिया कि तुम दासी के पुत्र थे सो हार गये। मैं असल रानी का जाया होने की वजह से जीत गया। अपना मां का निरादर मान अमान इस पर बुरी तरह भड़क गया और काफी समझाने के बाद भी यह कहते हुए बिना बहिन की विदा कराये वापस लौट गया कि अब मैं सेना लेकर आऊंगा। तब फैसला होगा कि असली कौन है, नकली कौन। पन्ना में जब अमान सिंह की मां को उसके इरादे का पता चला तो उसने अमान से शांत हो जाने को कहा। मां का कहना था कि अगर उसने तुम्हें दासी पुत्र कह दिया तो उसकी पत्नी भी तो मेरी बेटी होने के कारण दासी हुयी। यह चोट खुद उसी पर है इस कारण इस कहे का क्या बुरा मानना। बुंदेली में उसकी मां की अभिव्यंजना को कवित्त में पिरो दिया गया है ‘जे ई बांस के डलिया बिजना, वो ही बांस के सूप। बहरहाल बुंदेली ठसक में अमान ने अकोढ़ी पर चढ़ाई कर अपने बहनोई प्रान सिंह का सिर काट लिया। बाद में उसी ने अपने बहनोई की चिता को मुखाग्नि दी। चिता में अमान की बहिन सुभद्रा भी सती हो गयी। अयोध्या प्रसाद कुमुद का कहना है कि राछरा बुंदेलखंड अंचल के सभी 22 जिलों में गाया जाता है। राछरा रासो का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है शौर्य गाथा।
इंटर कॉलेज में लगा शिलालेख।
गढ़ी पर बन गया इंटर कालेज
प्रान सिंह की गढ़ी पर अब अकोढ़ी में इंटर कालेज स्थापित हो गया है। गढ़ी के कुछ जमींदोज अवशेष बचे हैं। गांव में प्रान सिंह लोक देवता के रूप में सावन के महीने में आज भी पूजे जा रहे हैं। इंटर कालेज में उनका स्मारक लेख लगवाया गया है जो कहानी की ऐतिहासिकता की पुष्टि करता है। ग्रामीणों ने बताया कि उनके वंश की एक शाखा के लोग वर्ध में रहते हैं। हालांकि ग्रामीणों को अमान सिंह और प्रान सिंह में हुए युद्ध की विशेष जानकारी नहीं है।
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments