Hind
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प्रतिस्पर्धा के इस युग में कोरोना एक ऐसा काल बनकर आया है, जिसका कालचक्र समय की गति से चलता ही जा रहा है। इस काल की भेंट रोज विद्यार्थी चढ़ता है। वह इस असमंजस में रहता है, कि परीक्षा होगी या नहीं चलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कह ही दिया कि परीक्षा अब होनी ही है।
परंतु क्या यह उचित होगा कि जिस दौर में लोगों को घरों से निकलने को मना किया जा रहा है वहां बच्चों को परीक्षा के लिए कोरोना के मुंह में ढकेल दिया जाए और यह ना किया जाए तो क्या उचित होगा। क्या बच्चे खुद को एक साल पीछे देखना चाहेंगे।
डगर कठिन है।
बिपिन सिंह
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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