Special Days
- 1020 Posts
- 2122 Comments
आजादी एक जन्म के समान है. जब तक हम पूर्ण स्वतंत्र नहीं हैं तब तक हम दास हैं : महात्मा गांधी
आजादी के छह दशक बाद भी अकसर चर्चा में सुनने को मिल जाता है कि सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक तौर पर भारत की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. हमें पराधीनता से मुक्ति तो मिल गई है लेकिन खुद को सामाजिक और राजनैतिक जकड़न से मुक्त नहीं कर पाए हैं. ऐसे में उस महान विचारक का स्मरण होता है जिसने समृद्धि और उज्जवल भारत का सपना देखा था.
ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेता तथा बीसवीं सदी के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में पाश्चात्य आधुनिकता का विरोध कर हमें यथार्थ को पहचानने का रास्ता दिखाया. ग्रामीण विकास को केन्द्र में रखकर उन्होंने वैकल्पिक टेक्नॉलोजी के साथ-साथ स्वदेशी और सर्वोदय के महत्व को बताया. उनके इस आदर्श प्रतिरूप का अनुसरण करके नैतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और शक्तिशाली भारत का निर्माण सार्थक बनाया जा सकता है.
Read: प्रणयोत्सव पर्व: उस अधूरे प्रेम पत्र को करें पूरा
आजादी से महात्मा गांधी का अर्थ केवल अंग्रेजी शासन से मुक्ति का नहीं था बल्कि वह गरीबी, निरक्षरता और अस्पृश्यता जैसी बुराइयों और कुरीतियों से मुक्ति का सपना देखते थे. वह चाहते थे कि देश के सारे नागरिक समान रूप से स्वाधीनता और समृद्धि के सुख भोगें. वह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, सामाजिक और आत्मिक उन्नति भी चाहते थे. इसी भावना ने उन्हें ‘ग्राम उद्योग संघ’, ‘तालीमी संघ’ और ‘गो रक्षा संघ’ स्थापित करने के लिए प्रेरित किया.
गांधी जी ने समाज में व्याप्त शोषण की नीति को खत्म करने के लिए भूमि एवं पूंजी का समाजीकरण न करते हुए आर्थिक क्षेत्र में विकेंद्रीकरण को महत्व दिया. उनकी विचारों में लघु एवं कुटीर उद्योग से ही देश की सही उन्नति हो सकती है.
Read: ‘आप’ का एक महीने का हिसाब ?
महात्मा गांधी के आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. वह देश के साथ-साथ महिलाओं की आजादी के भी समर्थक थे. इसलिए उन्होंने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए दहेज प्रथा उन्मूलन के लिए अथक प्रयत्न किया. वे बाल विवाह और पर्दा प्रथा के कटु आलोचक थे. वे विधवा पुनर्विवाह के समर्थक भी थे. सांप्रदायिक ताकतों से नफरत करने वाले गांधी ने हमेशा ही द्वेषधर्म की जगह प्रेमधर्म का ही पालन किया. उनका मानना था कि भारत अहिंसा का पालन करके स्वराज्य को जल्द ही प्राप्त कर सकता है.
महात्मा गांधी के बहुत-से क्रांतिकारी विचार, जिन्हें उस समय नकारा जाता था, आज न केवल स्वीकार किए जा रहे हैं बल्कि अपनाए भी जा रहे हैं. आज की पीढ़ी के सामने यह स्पष्ट हो रहा है कि गांधी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे. वर्तमान राजनीतिक तंत्र के लिए गांधीगीरी आज के समय का मंत्र बन गया है. यह सिद्ध करता है कि महात्मा गांधी के विचार इक्कीसवीं सदी के लिए भी सार्थक और उपयोगी हैं.
Read more:
Read Comments