तब आत्मीयता के साथ प्रत्याशियों से जुड़ते थे कार्यकर्ता
लौरिया प्रखंड के शुघरछाप गांव निवासी और सेवानिवृत्त शिक्षक 70 वर्षीय रामाधार राव बताते हैं कि पहले के चुनाव में और अब के चुनाव में काफी बदलाव आया है।
बेतिया। लौरिया प्रखंड के शुघरछाप गांव निवासी और सेवानिवृत्त शिक्षक 70 वर्षीय रामाधार राव बताते हैं कि पहले के चुनाव में और अब के चुनाव में काफी बदलाव आया है। हम लोग बचपन में देखे हैं कि प्रत्याशियों का चुनाव अभियान द्वार द्वार घूम कर और पूरी आत्मीयता के साथ होता था। साइकिल और मोटरसाइकिल से प्रत्याशी पहुंचते थे। अभियान के क्रम में किसी के दरवाजे पर कोई मुद्दा छीड़ गया तो प्रत्याशी वहां समय देते थे। कन्नी काट कर भागते नहीं थे। इससे वोटरों में प्रत्याशी के प्रति एक विश्वास पैदा होता था। कुछ ही दिनों के अभियान में प्रत्याशी और उसके दल के आधार पर मन बना लेते थे। जीतने के बाद भी वे नेता गांव में पहुंचते थे और पूरे आत्मीयता के साथ आभार व्यक्त करते थे। पंचायत के गांवों में कैंप लगता था। एक -एक घर घूम कर लोगों से मिलते थे। अपनी पहचान बताने की उन्हें जरूरत नहीं थी। उस समय फंड का भी कोई झंझट नहीं था। लालच में वैसे कार्यकर्ताओं की हुजूम नहीं होती थी। श्री राव बताते हैं कि अब तो नेताओं के साथ अभियान में कार्यकर्ता कम ठेकेदारों की फौज अधिक होती है। चुनाव अभियान में निकलते हैं तो हाथ जोड़ते हुए सरपट निकल जाते हैं। किसी ने गांव मोहल्ले की कोई ज्वलंत समस्या बताई तो बस चुनाव जिताइए हम पूरा करा देंगे कहते हुए निकल जाते हैं। लग्जरियस वाहन और उनके पीछे वाहनों में सवार कार्यकर्ताओं का काफिला सरपट निकल जाता है।