जब नहीं सुनी गई आवाज तो गांव की सुरक्षा के लिए उठा ली कुदाल
बगहा। ये कैसी विडंबना है। बारिश नहीं हो तो यहां के लोग भूख से मर जाएंगे। बारिश होती है तो बाढ़ की तब
बगहा। ये कैसी विडंबना है। बारिश नहीं हो तो यहां के लोग भूख से मर जाएंगे। बारिश होती है तो बाढ़ की तबाही से बर्बाद होते है। इस तरह की त्रासदी में जीने वाले थरुहट क्षेत्र के लोग अभी से बाढ़ के डर से सहमे हैं। चूंकि पिछले वर्ष की त्रासदी को लोग अभी तक भूल नहीं पाए हैं। लगातार बारिश होने से पहाड़ी नदियों में आई बाढ़ के कारण थरुहट क्षेत्र के दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया और सैकड़ों लोगों का आशियाना झुग्गी-झोपड़ी सहित खाने पीने का समान पानी में बह गया। खौफनाक मंजर देख लोग यहां से वहां भाग आश्रय लेने पर मजबूर हो गए। उस खौफनाक मंजर को लोग भूलने को तैयार नहीं हैं। थरुहट व आदिवासी क्षेत्र के लोग बाढ़ का नाम सुनते ही कांप जाते हैं। थरुहट व आदिवासी क्षेत्र के अधिकतर गांव पहाड़ी नदियों क्रमश: झिकरी, भपसा, कोशिल, मनोर व घुटरी आदि के किनारे पर बसे हैं। जहां हर बरसात में बाढ़ की आशंका बनी रहती है। बाढ़ आने से इन नदियों के किनारे पर बसे तरुअनवा, सखुअनवा, पचफेड़वा, गोनौली, मलकौली, गोड़ार, जीतपुर, जिमरी, मैनाहां, हसनापुर, मदरहनी के साथ दर्जनों गांवों का सम्पर्क थरुहट की राजधानी हरनाटांड़ से लेकर प्रखंड मुख्यालय बगहा से टूट जाता है। यहां आज तक शासन प्रशासन द्वारा बाढ़ से बचाव के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
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पहाड़ी नदियों पर नहीं बना बांध : थरुहट क्षेत्र के लोगों के लिए बाढ़ कोई नई आपदा नहीं है। हर वर्ष लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके आज तक बाढ़ से बचाव के लिए पहाड़ी नदियों पर बांध का निर्माण नहीं कराया जाता है। यहीं नही बाढ़ से क्षतिग्रस्त घरों के मुआवजा के लिए लोगों को काफी भटकना भी पड़ता है। बाढ़ में लोग बेघर रहते हैं। लेकिन घोषणाओं के अनुपात में कुछ नहीं मिलता है। बाढ़ से प्रभावित इलाकों में से एक गांव बगहा दो प्रखंड के नौरंगिया दरदरी पंचायत का पचफेड़वा गांव भी है। जो बीते दो दशक पूर्व बाढ़ की वजह से विस्थापन का दंश झेल चुका है। इस गांव के ग्रामीण गांव के बगल से गुजरने वाली पहाड़ी भपसा नदी में आने वाली बाढ़ से काफी परेशान रहते हैं। हर बरसात में पलायन को मजबूर होते हैं। हर बरसात में पहाड़ी नदी तांडव मचाती है और गांव में पानी घुस कर तबाही मचाती है। पिछली बार यह गांव के घरों के साथ स्कूल में भी क्षति पहुंचाई थी। गांव के ग्रामीणों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर विधायक, सांसद व शासन प्रशासन तक से भपसा नदी पर बांध बनाकर गांव को तबाह होने से बचाने की गुहार लगाई। लेकिन किसी ने नहीं सुनी।
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बाढ़ से बचाव के लिए खुद से बनाया गाइड बांध : जब सरकार से मिली निराशा तो ग्रामीणों ने गांव के गुमस्ता जगरनाथ खतईत के नेतृत्व में कुदाल व फौड़ा लेकर श्रमदान से गांव की बरसाती नदी पर बांध का निर्माण कर गांव की तस्वीर ही बदलने में जुट गए। पचफेड़वा गांव के गुमस्ता ने गांव में एक बैठक किया। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि गांव के सभी घरों से एक एक व्यक्ति बांध निर्माण में अपना सहयोग देंगे। साथ ही निर्माण कार्य में लगने वाले संसाधनों के खर्च के लिए प्रति घर से दो सौ रुपये का चंदा भी इकट्ठा करेंगे। जिस पैसे से बांस व अन्य सामग्री की खरीदारी कर बांध का निर्माण करेंगे। इस बैठक के पश्चात सैकड़ों ग्रामीण महिला व पुरुष भोर की किरण उगने से पहले बांध निर्माण में जुट जाते और संध्या में सूरज ढ़लने तक श्रम दान करते। फिलहाल ग्रामीणों को कुछ हद तक बाढ़ की समस्या से निजात मिलती दिख रही है। लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि अगर बीते साल की तरह भयंकर बाढ़ आई तो इस बांध से कुछ लाभ नहीं होगा। इसके लिए गाइड बांध की जरूरत है। वहीं इसी गांव की तरह जिमरी नौतनवा पंचायत के मैनाहां गांव के ग्रामीणों ने भी शासन प्रशासन के उदासीन रवैये से तंग आकर खुद ही कोशिल नदी पर बांध बना कर गांव को सुरक्षित कर डाला।