सक्षम की जगह ज्यादा वोटकटवा उम्मीदवार ही आ रहा नजर
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तिथि नजदीक आ रही है आम जनता में अपने उम्मीदवार को चुनने और उनके नेतृत्व की चर्चा जोरों पर उठती जा रही है।
बेतिया । जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तिथि नजदीक आ रही है, आम जनता में अपने उम्मीदवार को चुनने और उनके नेतृत्व की चर्चा जोरों पर उठती जा रही है। कहीं जनप्रतिनिधियों पर सवालिया निशान उठाया जा रहा तो कहीं किसी के नेतृत्व को सराहा जा रहा है। जितने लोग उतनी तरह की बातें की जा रही है। कही देश को सुरक्षित रखने के लिए उसे सही हाथों में सौंपने का निर्णय लिया जा चुका है, तो कही किसान-मजदूरों की हालत व बेरोजगारी अब भी हावी है। कुछ लोग सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को अभी तक भुला नहीं पा रहे हैं। अलग-अलग चर्चाओं को इलेक्शन एक्सप्रेस के तहत समाहित करती चुनावी चर्चा पर आधारित है यह रपट। नरकटियागंज जंक्शन पर दिन के करीब 11 बज रहे हैं। तेज धूप लोगों को छांव में रहने को विवश कर रही है। मगर, कदम जब निकल पड़े हैं तो हर परिस्थिति में सफर करना मजबूरी व ध्येय भी बन जाते हैं। सवारी गाड़ी के इंतजार में कुछ यात्री खड़े हैं। ट्रेन आने में अभी विलंब है। प्रतीक्षालय में कुछ लोग सिर के नीचे गमछा रखकर पंखे की हवा में आराम फरमा रहे हैं। कुछ रेललाइन की तरफ देख रहे हैं कि कौन ट्रेन आई और गई। इसी बीच पत्थर के बने बेंच पर बैठे कुछ लोग आपस में लोकसभा चुनाव की चर्चा करते नजर आते हैं। भैरोगंज के धनीलाल पटेल कह रहे हैं कि इस बार चुनावी दंगल गजब है। सक्षम उम्मीदवार की जगह वोटकटवा ही ज्यादा नजर आ रहा है। जीतनेवाले के पास कोई आधार नहीं है, बस उसका विरोधी वोट बंट रहा इसलिए वह अपनी जीत सुनिश्चित मान रहा है। पहले ऐसा नहीं था। पहले लोग जनता के लिए काम करते थे अब तो सिर्फ काम अपने लिए करते हैं और गाल जनता के लिए बजाते हैं। बगल में बैठे राजेश केसरी भी उनकी हां में हां मिलाते कहते हैं-हां, भाई आपकी बात सही है। मगर वोट तो देना ही है, इसी में किसी को..। धनीलाल कहते हैं जब कुछ न बुझाए तो आंख मूंद कर उसकी तरफ देखिए जिसके हाथों में देश का भविष्य ज्यादा सुरक्षित नजर आए। देखो, पड़ोसी देश को सबक सिखाने के लिए कितनी सरकारें आई और गई। मगर किसी ने हौसला नहीं जुटाया। सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को देश कभी भी नहीं भूल सकता। इतना ही नहीं पड़ोसी देश को घुटनों के बल बैठने को मजबूर कर देने की ऐतिहासिक पहल किसी से छिपी नहीं है। राजेश केसरी कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान के घमंड को चूर करनेवाली सरकार इतिहास रच रही है। लेकिन व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तो स्थानीय जन प्रतिनिधि ही जिम्मेवार हैं ना..। अब आज ही का दिन ले लीजिए। ट्रेन के इंतजार में कब से बैठे हैं। मगर ट्रेन कब तक आएगी और कब खुलेगी कहा नहीं जा सकता।
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गाड़ियों के बंद होने से नेताओं के रास्ते बंद नहीं होते भाई साहब
सवारी गाड़ियों के बंद होने से बड़े नेताओं का कुछ नहीं जाता, परेशानी हम जैसे छोटे लोगों को होती है। अभी तक गोरखपुर के लिए बंद ट्रेनों को शुरू नहीं किया गया। इसका जिम्मेदार कौन होगा? संजय कुमार कहते हैं-अब तो एक बार फिर ट्रेनों का विलंब से चलना शुरू हो गया है। वह भी तब जब कई ट्रेनें बिना सही कारण के रद कर दी गई हैं। कोई पूछने-देखने वाला है क्या? सब अपने में मस्त र्है। जनता का क्या, वह तो 60-70 साल से यहीं सब झेलती आई है। चर्चा चल ही रही थी कि इसी बीच घोषणा होती है कि 75260 सवारी गाड़ी जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर दो पर लग रही है। यात्री अपना अपना सामान लेकर प्लेटफार्म नंबर दो की ओर बढ़ने लगते हैं। चर्चा में विराम लग जाता है। सभी सीट तलाशने लग जाते हैं। पार्टियों का तो काम है एक-दूसरे पर अंगुली उठाना
ट्रेन में बैठने के बाद एक बार फिर अधूरी चर्चाओं को आगे बढ़ाते हुए किशोरी प्रसाद ने कहा निर्णय हो चुका है, अगर हमें सुरक्षित रहना है तो देश को सुरक्षित हाथों में सौंपना ही होगा। खिड़की के पास बैठी बीणा देवी कहती हैं कि कई पार्टियां सवाल के जाल को बुनकर आमलोगों को भटकाना चाहती हैं। लेकिन देश को बचाने का केवल एक ही व्यक्ति में दम है। गांव गांव में आयुष्मान भारत योजना का लाभ कितने गरीब परिवार उठा रहे हैं। इससे उनके जीवन को नई रोशनी प्रदान हो रही है। मो. भोला कहते हैं कि पार्टियों का काम है, एक दूसरे पर उंगली उठाना। राजनीति में तो ऐसा ही होता है। अगर खुद अच्छा बनकर दूसरों को खरी खोटी न सुनाई जाए तो फिर आज की राजनीति कैसी। कई सरकारें आई, लेकिन किसान के लिए सम्मान निधि योजना एक नया अध्याय शुरू कर रही है। देश को जहां तक सुरक्षित रखने की बात है तो वो हमारे जवान ही काफी हैं। हां अगर उन्हें पूरी छूट दी जाए तब। ट्रेन आगे बढ़ते हुए साठी पहुंची। लेकिन चर्चा नहीं थमी।
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नोट के दम पर चुनाव लड़ने आ रहे कई प्रत्याशी
ट्रेन के मुशहरवा पहुंचते ही उसी बोगी में चढ़े एक यात्री नेइधर उधर से एडजस्ट कर खुद को सीट पर टिकाया और मुस्कुराते हुए सभी के चेहरों को निहारने लगे। एक मिनट के लिए सभी चुप रहे। फिर चर्चा आगे बढ़ाते हुए अशोक चौबे कहते हैं कि इस बार का चुनाव कुश्ती से कमजोर नहीं। पार्टियां ऐसे ऐसे उम्मीदवारों पर दांव लगा रही है जो जनता से काफी दूर हैं। लेकिन अगर सच्चे मन से जनता के सुख दुख में शामिल कोई शामिल हो तो जनता तो उसे ही चुनती है। साइड की सिगल सीट पर बैठे युवा अरविद कुमार कहते हैं कि आजकल उम्मीदवारों का चेहरा और कर्मठता देखकर नहीं, रुपये के बल पर टिकट लेन देन का खेल चलता है। जिसकी जितनी बोली, उसको उतनी बड़ी पार्टी। फिर नोट के दम पर चुनाव जीतने के बाद ऐसे लोग जनता को भूलकर अपना पेट खुजलाने लगते हैं।