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बंद चनपटिया चीनी मिल चालू होने से किसानों के घर आएगी खुशहाली

चनपटिया कृषि बहुल क्षेत्र है। इस क्षेत्र के 80 फीसद लोगों का जीवन कृषि से प्राप्त आय पर निर्भर है। गन्ना यहां की एकमात्र नकदी फसल है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 12:08 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:22 AM (IST)
बंद चनपटिया चीनी मिल चालू होने से किसानों के घर आएगी खुशहाली
बंद चनपटिया चीनी मिल चालू होने से किसानों के घर आएगी खुशहाली

बेतिया । चनपटिया कृषि बहुल क्षेत्र है। इस क्षेत्र के 80 फीसद लोगों का जीवन कृषि से प्राप्त आय पर निर्भर है। गन्ना यहां की एकमात्र नकदी फसल है। गन्ने की उपज और पैदावार पर किसानों के जीवन स्तर में बदलाव आता है। लेकिन यहां के गन्ना किसानों की माली हालत दिनोंदिन बदतर होते जा रही है। कारण कि चनपटिया चीनी मिल पिछले कई वर्षों से बंद है। 1932 में ब्रिटिशकाल में चनपटिया चीनी मिल स्थापित हुई थी। 1987-88 में इसे रुग्ण घोषित किया गया। 1996 में तत्कालीन विधायक बीरबल शर्मा के प्रयास से कोआपरेटिव के माध्यम से इसे चालू भी कराया गया था, मगर यह कोशिश कामयाब नहीं हुई। चीनी मिल बंद होने से किसानों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ टूट गई। किसानों का मिल पर करोड़ों रुपये बकाया है। इसे कोई पूछनेवाला नहीं है। लेकिन, अब इसके प्रति लोगों में सुगबुगाहट बढ़ने लगी है। मिल चालू करने को लेकर लोग मुखर होने लगे हैं। पेश है जागरण की चौपाल में लोगों के विचार।

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महना गांव में सोमवार को चौपाल में लोगों ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया। महना निवासी सुरुज पाण्डेय ने कहा कि चीनी मिल की बंदी से गुलजार रहने वाले चनपटिया बाजार में वीरानी छाई रहती है। किसानों की हालत पतली होती जा रही है। महना के पूर्व मुखिया शत्रुघ्न सिंह कहते हैं कि वर्ष 1987-88 में चीनी मिल रुग्ण घोषित हुआ। उसके छह वर्षों के बाद मिल में ताला लटक गया। मिल बंद होने से सैकड़ों कामगार सड़क पर आ गए। इसके साथ ही किसानों एवं बाजार की कमर टूट गई। मिल में लगभग एक हजार कर्मचारी व कामगार कार्यरत थे। पिछले ढाई दशक में इनमें से कई पैसे के अभाव में असमय काल के गाल में समा गए। अरुण मिश्र कहते हैं कि चीनी मिल बंद होने से चनपटिया बाजार बाजार की रौनक खत्म होती गई जिसके चलते यहां से सैकड़ों व्यवसायी अपना कारोबार समेटकर अन्यत्र पलायन कर गए। इसका असर किसानों पर भी पड़ा। ओमप्रकाश राय ने कहा कि मिल बंद होने के बाद हुए विभिन्न चुनावों में राजनेताओं ने लोगों को मिल चालू कराने का सब्जबाग दिखाया। लेकिन, अब यह मुद्दा राजनेताओं के एजेंडे से गायब हो गया है। लोगों ने मिल की बंदी को अब नियति ही मान लिया है। प्रभु राय, टोटा बाबू, सहबजान मियां, सुरेश पाण्डेय, टिकू मिश्र, महेद्र साह ने कहा कि मिल बंद होने के दो वर्ष के बाद 1996 में तत्कालीन विधायक बीरबल शर्मा के प्रयास से कोआपरेटिव के माध्यम से इसे चालू कराया गया। लेकिन यह प्रयोग मिल प्रबंधन एवं किसानों के बीच सामंजस्य नहीं होने से बुरी तरह विफल हो गया। इसके बाद इसे चालू कराने का प्रयास किसी ने नहीं किया। इससे लोगों में मिल को लेकर जगी उम्मीद भी टूट गई। लोगों की उम्मीद एक बार पुन: तब परवान चढ़ी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माध्यम से मोतिहारी के एक व्यवसायी ने चीनी मिल को खरीदा। किसानों एवं कामगारों को लगा कि अब मिल का दिन बहुरेगा। परंतु, इस बार भी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। उसके बाद से यह मिल अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है।

इनसेट

1994 से बंद है चीनी मिल

चनपटिया चीनी मिल वर्ष 1994 में बंद हो गया था। मिल बन्द होने के बाद जहां हजारों लोग गम एवम अवसाद में डूब गए, वहीं कुछ लोगों के लिए यह वरदान भी साबित हुआ। बन्दी के बाद मिल से करोड़ों के उपकरण गायब होते गए। मुट्टी भर लोगों ने बहती गंगा में जमकर हाथ धोये और देखते देखते अमीर बनते गए। इस खेल में छोटे से बड़े सभी शामिल रहे। इस कड़ी में एक तथाकथित प्रबंधक ने मिल को खोखला करने में अहम भूमिका निभाई । मिल चालू कराने का आश्वासन देकर कई कीमती उपकरणों पर हाथ साफ कर दिया। बाद में लोगों के विरोध के कारण वह मिल को छोड़ भाग निकला। अब यह मिल अपने गौरवशाली अतीत की छाया मात्र रह गई है या यूं कहें कि मिल का ढांचा मात्र ही अस्तित्व में है। हालांकि चीनी मिल के पास लगभग 200 एकड़ बेसकीमती जमीन है। देश मे नए उद्योग की स्थापना के लिए जहां जमीन का घोर संकट है ,वही यहां उपलब्ध जमीन यूँ ही बेकार पड़ा हुआ है ।

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चीनी मिल बंद हो जाने से किसानों की स्थिति दयनीय हो गई है। अब हम मिल से नाउम्मीद हो गए हैं। मिल चलने पर गन्ना किसानों की बड़ी समस्या हल हो जाएगी।

अजय सिंह, मुखिया मिल बंद हो जाने से यहां की रौनक खत्म हो गई है। चनपटिया का विकास रुक गया है। यहां से व्यवसायी पलायन कर रहे हैं, जिसका असर क्षेत्र के विकास और किसानों पर भी पड़ रहा है।

राकेश पांडेय मिल बंद होने से अब यहां किसान गन्ना लगाने से मुंह मोड़ रहे हैं। नकदी के रूप में जो गन्ना लगाना चाहता भी है वह बिचौलियों से ठगे जाते हैं। आने-पौने दाम में वह गुड़ उद्योग को बेचने को मजबूर होते हैं।

प्रमोद मिश्र मिल बंद हो जाने से गरीबों का चमन ही उजड़ गया। खेती से घर परिवार चलाया करता था, परंतु अब मुश्किल हो गया है। दूसरे मिलों के बिचौलिया हावी है।

महेंद्र साह


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