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सूखी नहर ने तोड़ी उम्मीदें इस बार हिसाब लेंगे किसान

पश्चिम चंपारण जिला मुख्य रूप से कृषि प्रधान जिला है। गन्ना धान गेहूं अरहर मूंग मसूर आदि यहां की मुख्य फसलें हैं लेकिन इन सारी फसलों का उत्पादन भी इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा इनपुट कैसा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 12:32 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 07:54 AM (IST)
सूखी नहर ने तोड़ी उम्मीदें इस बार हिसाब लेंगे किसान
सूखी नहर ने तोड़ी उम्मीदें इस बार हिसाब लेंगे किसान

बेतिया । पश्चिम चंपारण जिला मुख्य रूप से कृषि प्रधान जिला है। गन्ना, धान, गेहूं, अरहर, मूंग, मसूर आदि यहां की मुख्य फसलें हैं, लेकिन इन सारी फसलों का उत्पादन भी इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा इनपुट कैसा है। सभी इनपुट में सिचाई का महत्वपूर्ण स्थान है। सिचाई के लिए जल यदि सुलभ हो जाता है तो किसानों की परेशानी भी कम हो जाती है और महंगे इनपुट की मार से बच जाते हैं। सरकार ने सिचाई की व्यवस्था के लिए निरंतर बिजली की व्यवस्था की है। इसके लिए अलग से कृषि फीडर बनाया जा रहा है। लेकिन जहां नहर से सिचाई की व्यवस्था हो, तो बात ही कुछ और है। लेकिन नहर रहने के साथ कई दशकों से सूखा पड़ा हो, तो यह किसानों के लिए परेशान करने वाली बात नहीं तो और क्या है? कुछ ऐसा ही मसला चनपटिया प्रखंड के कैथवलिया से मुसहरी सेमुआपुर वितरणी का है। यह नहर तीन दशक से सूखी है लेकिन इस ओर जन प्रतिनिधियों का ध्यान आज तक नहीं गया। इस समस्या पर प्रस्तुत है रिपोर्ट :

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किसी भी व्यवस्था का उद्देश्य कार्य को सुलभ बनाना होता है लेकिन चनपटिया के किसानों के लिए यह व्यवस्था कहर बनकर टूट रही है। हकीकत से रू-ब-रू होना है तो चनपटिया प्रखंड के कैथवलिया से मुसहरी सेम्मुआपुर तक नहर का मुआयना कर लीजिए। यह नहर कई दशक पुरानी है। हर खेत को पानी के नारे के साथ सरकार ने वर्ष 1974-75 में इस नहर का निर्माण कराया था, लेकिन इस नहर को पिछले करीब तीन चार दशक से पानी की प्रतीक्षा है। सत्तर के दशक में निर्माण के बाद नहर में सिर्फ एक दफा पानी आया और वह भी नहर के अंतिम छोर तक नहीं पहुंचा। नतीजतन नहर में पानी की टकटकी लगाए किसानों की तीन पीढि़यां गुजर गई पर नहर के जरिए आज तक खेतों में पानी नहीं पहुंचा। इस तरह खेतों में पानी देने की बात जहां से शुरू हुई थी वहीं तक सिमट कर रह गई। किसान अब निराश हो चुके हैं। तकरीबन हर चुनाव में किसान नेताओं की आरजू मिन्नत करते हैं लेकिन आज तक उन्हें आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। नहर का आधा से अधिक हिस्सा भर गया है। लोग सड़क व खेत खलिहान के रूप में इसका इस्तेमाल करने लगे हैं। कई लोगों ने तो सूखी नहर के बांध को काटकर अपने खेत में भी मिला लिया है। चनपटिया प्रखंड के मुसहरी सब माइनर जैतिया वितरणी के दक्षिण छोर कैथवलिया के समीप से निकल कर कैथवलिया लगुनाहा, मुसहरी, सेमुआपुर से गुजरती है। नहर की लंबाई पांच आरडी है। इसमें वर्षों से पानी नहीं आने के कारण सैकड़ों एकड़ भूमि की सिचाई भगवान भरोसे या फिर पंपसेटों पर निर्भर है। नहर सूखी होने के कारण कहीं-कहीं नहर का अस्तित्व खत्म हो चुका है। यूं तो सरकारी फाइलों में नहर का अस्तित्व दर्ज है, लेकिन विभाग के कई अधिकारी भी यह जानकर अचंभित हैं। आलम यह है कि विभाग के कुछ पदाधिकारियों को यह भी पता नहीं है कि उक्त जगह पर कोई नहर भी है। कुछ वर्ष पूर्व जिले के नहरों के जीर्णोद्धार का कार्य आंध्रप्रदेश के नागार्जुन कंस्ट्रक्शन को सौंपा गया था। लेकिन इसमें मुसहरी माइनर का कोई जिक्र नहीं था। नहर में पानी नहीं आने की व्यवस्था की मार महना कुली, मुसहरी लगूनाहा, कैथवलिया सेम्मुआपुर आदि इलाके के हजारों किसान झेलने को मजबूर हैं।

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70 के दशक में हुई थी नहर की खुदाई

स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि वर्ष 1974-75 में नहर की खुदाई हुई थी। नहर की खुदाई होते देख किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। किसान सोचने लगे थे कि अब उनके खेतों की फसलें लहलहा उठेंगी। खेतों में पानी के लिए पंपसेटों पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। लेकिन किसानों का सपना कुछ ही दिन में चकनाचूर हो गया। नहर की खुदाई के बाद पहली दफा इसमें पानी छोड़ा गया। लेकिन पानी नहर के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच सका। खुदाई के बाद किसान इस नहर में दुबारा पानी नहीं देख सके। खेती के लिए वर्षा पर उनकी निर्भरता जस की तस बनी रही। अब तो किसान नहर में पानी आने का आसरा भी छोड़ चुके हैं। इसका बुरा असर सीधे-सीधे खेती किसानी पर दिख रहा है। हर खेत को पानी देने का सरकारी दावा फेल है और सूखी नहर किसानों को मुंह चिढ़ा रही है।

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संरचना ही दोषपूर्ण

स्थानीय लोगों का कहना है कि नहर की संरचना ही दोषपूर्ण है। जहां से यह नहर निकलती है उसके कुछ दूर आगे बढ़ते ही वहां की भूमि नीची हैं। जबकि उससे आगे की भूमि ऊंची होने के कारण पानी का बहाव नहीं हो पाता है। तकनीकी जानकारों का कहना है कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो मामूली खर्च के बाद नहर में पानी सप्लाई किया जा सकता है। जहां जमीन नीची है वहां यदि ह्यूम पाइप लगा दिया जाए तो नहर के अंतिम छोर तक पानी पहुंचाया जा सकता है। जानकारों के अनुसार इसमें मामूली खर्च है। लेकिन उपेक्षा के कारण इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसका खामियाजा यहां के किसान भुगतने को मजबूर हैं।

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कहते हैं किसान

मुसहरी के वयोवृद्ध सेवानिवृत शिक्षक व किसान आशा प्रसाद, रुदल महतो, रामा महतो, महनाकुली के किसान श्रीकांत मिश्र, प्रमोद मिश्र, राजबली सिंह, बबलू पांडे ने बताया कि जब नहर निर्माण हुआ था तो फसल लहलहाने की उम्मीद जगी थी लेकिन समय के साथ यह उम्मीद दफन हो गई है। सेम्मुआपुर के अरुण चौबे, मनोज सिंह, मुखिया अजय सिंह ने कहा कि बचपन से जवानी की दहलीज पर पहुंच गए लेकिन नहर में पानी नहीं देखा। किसानों ने कहा कि इस इलाके में नहर होने के बाद भी उन्हें खेती के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। पंपसेटों से पटवन कराने में हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं। सरकार किसानों को सुविधा देने पर जोर दे रही है लेकिन यहां यह कैसी व्यवस्था है कि नहर होने के बाद भी उनके खेतों को पानी नहीं मिल रहा है।


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