अब धन और बल के दम पर चुनाव जीत रहे प्रत्याशी, सादगी बीते जमाने की बात
देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। होश संभाला तो कई क्रांतिकारियों की वीरता के किस्से अपने अभिभावकों से सुना।
बगहा । देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। होश संभाला तो कई क्रांतिकारियों की वीरता के किस्से अपने अभिभावकों से सुना। अब लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हमें सबकुछ करने की आजादी थी। 18 साल की उम्र में मैं शिक्षा ग्रहण कर रहा था। वोटर लिस्ट में अपना नाम पहली बार देखा तो महसूस हुआ कि मैं अब जिम्मेदार हो गया हूं। नगर के ऐतिहासिक डीएम एकेडमी में मतदान केंद्र बना था। वोट देने से पहले कई बार घर से इस मतदान केंद्र को देखने आता था। उक्त बातें नगर के वार्ड 31 रत्नमाला निवासी 78 वर्षीय डॉ. त्रियोगी नारायण पांडेय ने कहीं। कहते हैं कि गांव हो या शहर कुछ चुनिंदा लोगों के पास ही उम्मीदवार जाते थे। उसके बाद निर्णय होता था कि वोट किसे देना है। पहले इतने प्रत्याशी नहीं दिखते थे। कांग्रेस, जनसंघ व कम्युनिस्ट पार्टी ही प्रमुख थी। मुझे याद है। बगहा अस्पताल परिसर में जगजीवन राम, केदार पांडेय, नरसिंह बैठा , कमलनाथ तिवारी का भाषण चिलचिलाती धूप में सुना था। वैसे मुझे राजनीति से बहुत लगाव नहीं रहा है। लोग खुद नेता को देखने आते थे। आज की तरह भीड़ नही जुटानी पड़ती थी। चुनाव प्रचार बैलगाड़ी, साइकिल, जीप, ट्रैक्टर से होता था। आज रुपये से वोट खरीदा जाता है। लोकतंत्र की सरेआम हत्या हो रही है। मुझे लगता है कि एक बार फिर से समीक्षा करने की जरूरत है।