बंदगी के तट पर सियासत की गंदगी
पशु- पक्षी खेत और इंसानों से लेकर सियासत के नुमाइंदों तक को तर - बतर करने वाली रामनगर शहर के मध्य से गुजरी रामरेखा नदी वर्षो से खुद की जिदगी बचाने के लिए तड़प रही है।
बगहा । पशु- पक्षी , खेत और इंसानों से लेकर सियासत के नुमाइंदों तक को तर - बतर करने वाली रामनगर शहर के मध्य से गुजरी रामरेखा नदी वर्षो से खुद की जिदगी बचाने के लिए तड़प रही है। ऐतिहासिक महत्व वाली इस नदी की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर सियासी स्तर पर कभी कोई प्रयास नहीं किया गया। यहीं वजह है कि रामरेखा नदी में चीनी मिल का विषाक्त जल प्रवाहित होता है। जगह - जगह पर लोगों ने इसका अतिक्रमण कर लिया है। रामरेखा नदी की व्यथा की पड़ताल करती बगहा से सुनील आनंद की रिपोर्ट। मैं वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के रामनगर शहर के मध्य से हो कर बहने वाली रामरेखा नदी हूं। कभी जीवनदायिनी के रूप में जानी जाती थी। गर्मी के दिनों में जब सभी नदी - नाले सूख जाते हैं तो भी मैं अपने अस्तित्व में कायम रहती हूं और पशु - पक्षी की प्यास बुझाती हूं। लेकिन, अभी हालात ऐसे हैं कि मैं खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए तड़प रही हूं। कोई मेरी पीड़ा को नहीं समझता। यूं कहें तो पौराणिक महत्व समेटे रामरेखा नदी नाले में तब्दील हो गई है। बरसात के दिनों में ताल पोखरों से इसका फैलाव होता है। यह तमाम जगहों पर अतिक्रमण का शिकार है। जिसके चलते इसका अस्तित्व ही संकट में है। नदियां बरसात के दिनों में जल निकासी का प्रमुख साधन होती हैं। लेकिन, जिस कदर इनकी उपेक्षा की जा रही है, वह दिन दूर नहीं जब इसके धरा का नामोनिशान ही नहीं रह जाएगा। नदी पूरी तरह से घास और झाड़ियों से पटी हुई है। इसकी यह दशा देख कर कोई विश्वास भी नहीं करेगा यह कोई नदी है। हरिनगर चीनी मिल के निकट से गुजरते ही इस नदी का अतिक्रमण शुरू हो जाता है। नदी के उपर से मिल के बगास की ढुलाई होती है। इसके लिए मिल प्रबंधन ने उपकरण लगा रखा है। बरसात में धारण करती रौद्र रूप
नदी के अतिक्रमण किए जाने का ही परिणाम है कि प्रत्येक वर्ष यह नदी बरसात के दिनों में रौद्र रूप धारण करती है। बाढ़ का पानी शहर के कई मोहल्ले में तबाही मचाता है। जब तबाही मचती है तो प्रशासन की चिता बढ़ती है। बाढ़ पीड़ित परिवारों को राहत मुहैया कराई जाती है। लेकिन, तबाही क्यों मचती है, इसके कारण की पड़ताल कर समाधान की कोशिश नहीं होती। क्योंकि, मामला चीनी मिल से जुड़ा हुआ है। अब देखादेखी आम शहरी भी नदी का अतिक्रमण करने लगे हैं और शासन प्रशासन के नुमाइंदे मौन हैं। राजा रामचंद्र के तीर से नदी की उत्पत्ति
पौराणिक कथाओं के माध्यम से एक किवदंती है कि अश्वमेघ का घोड़ा वाल्मीकिनगर में लव-कुश ने पकड़ कर रखा था। घोड़े को छुड़ाने के लिए जब राजा रामचंद्र वाल्मीकिनगर जा रहे थे तो रामनगर से करीब चार किमी की दूरी पर भावल गांव के सरेह में उन्हें प्यास लगी। दूर दूर तक कहीं कोई जल स्रोत दिखाई नहीं दिया। फिर राजा रामचंद्र ने तीर चलाया और नदी की उत्पत्ति हुई। सौंदर्यीकरण के नाम पर राजनीति
रामरेखा नदी के तट पर प्रति वर्ष छठ का विशाल आयोजन होता है। इस नदी की याद यहां के लोगों को भी सिर्फ छठ के अवसर पर आती है। शेष दिनों में कूड़ा - कचरा फेंकने के अलावा कोई काम नहीं रहता। नगर पंचायत रामनगर की ओर से भी नदी में अवस्थित छठ घाट के सौंदर्यीकरण को लेकर वर्षों से खूब सियासत होती है। सौंदर्यीकरण का आलम यह है कि सिर्फ सीढि़यां बनी हैं। -- 12 हजार की आबादी प्रति वर्ष बाढ़ में होती है तबाह
-- 08 मोहल्ले की जल निकासी का एक मात्र साधन रामरेखा नदी
-- 30 लाख की लागत से रामरेखा नदी छठ का सौंदर्यीकरण
-- 10 करोड़ खर्च कर बना पुल अतिक्रमणकारियों के गिरफ्त में