भारत - नेपाल सीमा पर सुस्ता विवाद सियासी फाइल में दफन
भारत और नेपाल के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता रहा है। नाते-रिश्तेदारी से लेकर दोनों देशों के लोग सीमा पार कर रोजगार की तलाश में आते-जाते रहते हैं।
बगहा । भारत और नेपाल के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता रहा है। नाते-रिश्तेदारी से लेकर दोनों देशों के लोग सीमा पार कर रोजगार की तलाश में आते-जाते रहते हैं। इसके बावजूद वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के वाल्मीकिनगर में दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वाल्मीकिनगर वन क्षेत्र स्थित सुस्ता और चकदहवा में कुल 5478 एकड़ भूमि पर नेपालियों ने कब्जा जमा रखा है। जो कि सुगौली संधि का सरासर उल्लंघन है। सुगौली संधि वर्ष 1814-16 में इस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के तत्कालीन राजा के बीच हुई थी। सीमा विवाद को सुलझाने के लिए सियासी तौर पर पहल की दरकार है। पड़ताल करती वाल्मीकिनगर से रिपोर्ट। वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र की कुल 5478 एकड़ भूमि पर नेपालियों ने कब्जा जमा रखा है। यह इस बार के संसदीय चुनाव का एक बड़ा मुद्दा है कि इस जमीन को खाली कराकर भारत अपने कब्जे में ले। सुगौली संधि के अनुसार राप्ती और गंडक नदी के बीच के तराई क्षेत्र को नेपाल को हस्तगत किया गया था। संधि के अनुसार वाल्मीकिनगर में गंडक नदी के मध्य को सीमा माना गया । कालांतर में नदी ने अपना रास्ता बदला और भारतीय क्षेत्र से बहने लगी। तब नदी द्वारा छोड़ी गई जमीन पर नेपालियों ने कब्जा कर लिया। धीरे-धीरे अतिक्रमण का दायरा बढ़ता गया और आज स्थिति यह है कि विवादित जमीन पर नेपाली जोत-आबाद कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि भारतीय गांव चकदहवा से महज एक कदम की दूरी पर अवस्थित पगडंडी तक नेपाली काबिज हो चुके हैं। सुस्ता के नाम पर भारत सरकार को नेपाल के साथ यथावत स्थिति कायम रखने का निर्णय उस समय लेने को मजबूर होना पड़ा था जब 4 मई 1964 को भारत-नेपाल सीमा अवस्थित वाल्मीकिनगर (तब का भैंसालोटन) में अति महत्वाकांक्षी गंडक सिचाई परियोजना के तहत बराज का शिलान्यास हुआ। सुस्ता समेत अन्य तटवर्ती भूमि पर जोत आबाद को लेकर 23 जनवरी 1964 को भारतीय क्षेत्र में स्थित रमपुरवा के ग्रामीणों तथा नेपाली शाही सेना के बीच भयानक खूनी संघर्ष हुआ था। बावजूद इस पर सियासी पहल नहीं हुई। क्योंकि, सरकार को इस बात की आशंका थी कि अगर मामला गरमाया तो गंडक बराज जैसी महत्वपूर्ण परियोजना अधर में लटक जाएगी। 25 व 26 फरवरी 1964 को कोतराहां में दोनों देशों के उच्चाधिकारियों की बैठक हुई। निष्कर्ष यह निकला कि जब तक दोनों देशों की संयुक्त सीमा की पैमाइश नहीं हो जाती, यथास्थिति बनाकर रखी जाएगी। सुस्ता में कोई नया निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। यथास्थिति बनाए रखने के लिए पुलिस की प्रतिनियुक्ति भी की गयी थी । लेकिन, बाद में विभागीय पहल भी ठप पड़ गयी।
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तब महज 200 हेक्टेयर था सुस्ता का क्षेत्रफल :
वाल्मीकि वन प्रक्षेत्र वन निगम को सौंपे जाने के पूर्व तक सुस्ता का क्षेत्रफल लगभग 200 हेक्टेयर था। एक दस्तावेज के मुताबिक, 30 मई 1975 को पश्चिम चंपारण के डीएम एच.एस.सिन्हा व एसपी आर. राम ने जब सुस्ता का निरीक्षण किया था, उस समय वहां 553 परिवार में से दो-ढा़ई दर्जन ही नेपाली थे । यथास्थिति का कमाल है कि आज परिवारों की संख्या वहां चार गुनी बढ़ी हुई है। जीपीएस सिस्टम की पैमाइश विधि अनुसार निकली 3.75 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैले सुस्ता में दर्जनों पक्के मकान है। पहले सिर्फ नेपाली थाना था, अब शाही सेना स्थापित है। जो दिन-रात अपनी विस्तारक गतिविधियां चला रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वन भूमि अतिक्रमण से अब तक भारत व बिहार सरकार को 860 करोड़ रुपये की वन संपदा का नुकसान हुआ। नरसही जंगल (जीपीएस सिस्टम के अनुसार क्षेत्रफल 11.43 वर्ग किमी) पर अभी नेपाल का अधिपत्य है। इससे इतर रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य यह कि क्षेत्र के बुजुर्ग आज भी यह मानने को तैयार नहीं कि सुस्ता प्राचीन गांव है। बहुतेरों का कहना है कि वाल्मीकिनगर थाना क्षेत्र के बलगंगवा, परसौनी, चकदहवा व रामपुरवा ग्राम का तटवर्ती भूखंड ही आज का सुस्ता है।
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थानाध्यक्ष व दो सिपाहियों की हुई थी हत्या :
वन विकास निगम की स्थापना वर्ष 1978 में की गई और उस समय भी सीमा विवाद जारी था। 15 सितंबर1982 को वाल्मीकिनगर के तत्कालीन थाना प्रभारी इसराइल खान एवं दो आरक्षियों की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी गई थी, जब वे अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए गए थे। यह स्थल पैसों के लिए अपहरण लूट व डकैती को अंजाम देने तथा अपने वर्चस्व को कायम रखने वाले भारतीय भगोड़े अपराधियों की शरणस्थली है। वर्ष 1965 में ही नेपाल सरकार द्वारा विवादित सुस्ता में पुलिस चौकी, स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक विद्यालय, आदि की स्थापना कर दी गई। 11अक्टूबर 2007 को दोनों देशों के अधिकारियों के द्वारा पास पांच सदस्यों की टोली शांति वार्ता के लिए गठित की गई थी। लेकिन कोई भी एक दूसरे की शर्त मानने को तैयार नहीं था। नतीजा वार्ता पूर्णतया विफल रही। 11 अक्टूबर 2007 को नेपाल सशस्त्र बल के तत्कालीन डीएसपी महेश अधिकारी एवं सशस्त्र सीमा बल भारत के 21 वीं वाहिनी के तत्कालीन सेनानायक एचआर बारोट के द्वारा विवादित क्षेत्र का मौखिक सीमांकन किया गया था। ढोग नाला स्थित सेमल के पेड़ को ही मौखिक सीमा रेखा मान लिया गया था तथा यथा स्थिति बहाल रखने की बात कही थी। जिसका नेपाल की ओर से बार-बार उल्लंघन किया जाता रहा है।
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1940 के नक्शे में नहीं था सुस्ता :-
वर्तमान सुस्ता भारत का भू भाग है। सन 1940 में अंग्रेज कर्नल जैक्सन के द्वारा चंपारण (बिहार) गोरखपुर( यूपी) बुटवल एवं चितवन (नेपाल) जनपदों का संयुक्त सर्वे कर मानचित्र संख्या 63/ एमआईएस बनाया गया था जिसमें सुस्ता का जिक्र नहीं है। मौजा परसौनी थाना नंबर 11 तापा राजपुर सोहरिया परगना मझौआ डिवीजन बगहा जिला बेतिया पूर्व जिला मोतिहारी से प्राप्त कागजातों को देखने के बाद यह साबित होता है कि वर्तमान में चल रहा झोपड़ीनुमा चकदहवा विद्यालय, एसएसबी 21 वीं वाहिनी का बीओपी सुस्ता, नेपाल स्थित जनता दलित विद्यालय सुस्ता, पुलिस चौकी स्वास्थ्य केंद्र आदि अवस्थित है। वहीं सुस्ता से सटा चकदहवा क्षेत्र चकदहवा के निवासियों के त्याग और बलिदान की बदौलत नेपाली शाही सेना से बचाई गई भारतीय भूमि है। भारत -नेपाल सीमा पर वन विभाग के अतिक्रमण के मामले को लेकर उच्चाधिकारियों को प्रतिवेदन भेजा गया है। इससे वन विभाग को काफी नुकसान है। सीमा पर लगातार चौकसी बरती जाती है। अतिक्रमित भूमि को चिन्हित भी कर लिया गया है।
-- हेमकांत राय, निदेशक , वीटीआर