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रैयती हक के लिए जंग , सियासत ने किया तंग

वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्रों के कुल 214 गांवों में थारू समाज निवास करता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार संसदीय क्षेत्र में थारुओं की कुल आबादी 2.57 लाख है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 11:36 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 11:36 PM (IST)
रैयती हक के लिए जंग , सियासत ने किया तंग
रैयती हक के लिए जंग , सियासत ने किया तंग

बगहा । वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्रों के कुल 214 गांवों में थारू समाज निवास करता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार संसदीय क्षेत्र में थारुओं की कुल आबादी 2.57 लाख है। इसमें करीब एक लाख मतदाता हैं। इसके बावजूद उन्हें आजतक राजनीतिक प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला। हालांकि, वर्ष 2002 तक अति पिछड़ा वर्ग में आने वाले थारुओं को 8 जनवरी 2003 को जनजाति का दर्जा मिला। आदिवासी का दर्जा मिलने के बाद थारुओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में भले ही अब तक मौका नहीं मिला हो, लेकिन सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी बढ़ी है। बीते एक दशक में सेना, अ‌र्द्धसैनिक बल, रेलवे, बैंक, न्यायिक सेवा, बिहार सरकार की नौकरियों आदि में थारु पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा संख्या में हैं। थारू समाज की वर्तमान स्थिति की पड़ताल करती रिपोर्ट। वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र में 563 ई.पू. से थारु निवास करते आ रहे हैं। हिमालय की तराई में बसे इस संसदीय क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्रों क्रमश: बगहा, वाल्मीकिनगर और रामनगर में इनकी आबादी सबसे अधिक है। संसदीय क्षेत्र के 214 रैयती गांवों में 2.57 लाख थारु रहते हैं। लंबे समय तक यह समाज पिछड़ेपन का दंश झेलता रहा। गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ा यह समाज वर्ष 2003 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद चर्चा में आया। तब केंद्र में वाजपेयी जी की सरकार थी। जनवरी 2009 में राज्य सरकार ने समेकित थरूहट विकास अभिकरण का गठन किया। अभिकरण के तहत कुल 260 योजनाएं चयनित की गयीं, जिनमें से 239 योजनाएं पूरी कर ली गयी हैं। इसपर करीब 125 करोड़ रुपये खर्च हुए। थारुओं की स्थिति सुधारने के लिए शुरू की गई इस मुहिम का असर गांवों में देखने को मिला। इसके बावजूद बड़ा सवाल थारुओं के रैयती हक और राजनीतिक रसूख को लेकर उठता रहा। आज भी थारु समाज समस्याओं के लंबे मकड़जाल में फंसा हुआ है। भारतीय थारू कल्याण महासंघ के अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद के अनुसार अभी तक थरुहट क्षेत्र में एक भी महाविद्यालय नहीं है। बच्चे एवं बच्चियों के उच्च शिक्षा हेतु महाविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के उदासीनता के कारण घोषित छह अतिरिक्त अस्पताल थरूहट में बनाने की योजना थी। परन्तु अभी तक बगहा दो बिनवलिया, बेलहवा एवं रामनगर प्रखण्ड के शेरवा दोन का भवन निर्माण पूर्ण होने के बावजूद अभी तक उसका उद्घाटन नहीं हुआ है। बेलसण्डी, जमुनिया एवं चौहवा में भवन निर्माण कार्य कब प्रारम्भ होगा, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। थरूहट क्षेत्र में जितने भी उपस्वास्थ्य केन्द्र हैं, लगभग सभी की स्थिति जर्जर हैं। वर्षों से चिकित्सीय सुविधा के लिए यह समाज जद्दोजहद कर रहा है। वन अधिकार के लिए लंबे समय से चल रहा आंदोलन :-

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वाल्मीकि टाईगर रिजर्व के विभिन्न वन क्षेत्रों में थारु गांव आबाद हैं। प्रकृति को ही थारु-आदिवासी अपनी आराध्य देवी मानते आए हैं। जंगल को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने से पूर्व थारु वन संपदाओं का उपभोग करते थे। लेकिन वीटीआर के गठन के बाद थारु और आदिवासियों से इससे वंचित कर दिया गया। काफी समय पूर्व जंगल के किनारे निवास करने वाले व्यक्तिगत एवं सामूहिक दावा फॉर्म भरकर अनुमंडल पदाधिकारी के कार्यालय में जमा किया गया। लेकिन आज तक क्रियान्वयन नहीं हो सका। थारुओं का दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण को लेकर है। थारु नेता बताते हैं कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का आरक्षण दो फीसदी है। परंतु, बिहार में मात्र एक फीसदी ही आरक्षण प्राप्त है। दोन क्षेत्र में जाने के लिए जंगल से होकर गुजरने वाले रास्ते की बदहाली को लेकर भी थारु खासे आक्रोशित हैं। थारुओं के अनुसार दुधवा नेशनल पार्क में पक्की सड़कें बनी हैं। इसके कारण वहां आवागमन को लेकर किसी प्रकार की समस्या नहीं और वन्य जीव तथा संपदाएं सुरक्षित हैं। फिर वीटीआर में पक्की सड़क के निर्माण से आखिर वन संपदाओं को किसी तरह का नुकसान होगा। दुधवा नेशनल पार्क की तर्ज पर यहां भी सड़क निर्माण कराया जाना चाहिए। ताकि दोन इलाके के 22 गांवों के लिए विकास के नये दरवाजे खुल सके।

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थारु आबादी :-

प्रखंड कुल गांवों की संख्या थारु बहुल गांव

बगहा दो 161 73

रामनगर 132 39

गौनाहा 156 87

मैनाटाड़ 92 15 38 उपजातियों में बंटा है थारु समाज :-

कुश्मी, हरदिउला, गुलाबी कुश्मी, दहित, दड़गवा, सत्गौवा, बाटर, रतगैया, शिरबगरिया, धमला, गमुवा, तेरां, दनवार, राना, कठरिया, लौवा, कठबजिया, कुमाल, करिया मधरिया, पछल दड़गिया, घोघतहवा, राजवंशी, करिया अड़गराहा, पल्परिया, उल्टहवा, बखरिया, बखरिहवा, बनियां, अहिर, मुसेहेर, धोरकटा, सुरहन, धकेहेर, दुकुर पोछिया, मुर्रो, तेली, बथवा और कुम्हार थारु।

---पश्चिम चंपारण जिले के 214 गांवों में रहते हैं 2.57 लाख थारु

---38 उपजातियों में बंटा है थारु समाज, संस्कृति है इनकी पहचान

---वर्ष 2003 में थारुओं को मिला अनुसूचित जनजाति का दर्जा

---वर्ष 2009 में हुआ थरुहट विकास अभिकरण का गठन

---वनाधिकार के लिए आंदोलनरत हैं चंपारण के वनवर्ती इलाके में बसे थारु

---शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की आजतक नहीं हो सकी है व्यवस्था

---खेती और मेहनत मजदूरी कर परिवार का करते जीविकोपार्जन

---सरकार ने नहीं सुनी बात तो बच्चों की शिक्षा के लिए थारुओं ने खोला कॉलेज

---शिक्षा का स्तर बेहतर होने के बाद सरकारी नौकरियों में बढ़ रही सहभागिता


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