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पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ी, बाढ़ की समस्या पर राजनीति तेज

बगहा । पंचायत चुनाव को लेकर प्रशासनिक तैयारियां तेज हो गई हैं। इधर इससे अधिक सरगर्मी पंचायतों व गांवों में दिख रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Aug 2021 11:15 PM (IST)Updated: Sun, 22 Aug 2021 11:15 PM (IST)
पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ी, बाढ़ की समस्या पर राजनीति तेज
पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ी, बाढ़ की समस्या पर राजनीति तेज

बगहा । पंचायत चुनाव को लेकर प्रशासनिक तैयारियां तेज हो गई हैं। इधर इससे अधिक सरगर्मी पंचायतों व गांवों में दिख रही हैं। पुराने मुखिया व पंचायत प्रतिनिधि अपने कुर्सी को बचाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं तो, नए उम्मीदवार पुराने की नाकामयाबी का हवाला देकर मतदाताओं को सतर्क कर रहे हैं। इसके साथ मौका मिलने पर बेहतर काम करने की बात कह रहे हैं। इसी क्रम में बाढ़ व बारिश से हुए नुकसान को लेकर भी आवाज उठाई जा रही है। साथ हीं प्रभावितों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया जा रहा है। कुछ लोग तो, चूड़ा गुड़ से लेकर राशन तक भी बीते दिनों आए बाढ़ में बांट चुके हैं। इसमें वर्तमान प्रतिनिधि के अलावा नए प्रत्याशी भी शामिल हैं। हालांकि जनता को भी समझ है। वह इस बदले हालात को समझ रही है। पांच सालों तक लोगों से दूर रहने वाले अब दरवाजे दरवाजे दौड़ लगा रहे हैं। किसी की नहीं सुनने वाले अब लोगों के समक्ष हाथ जोड़ रहे हैं। गांव के चौक चौराहों व सार्वजनिक स्थलों पर जमा होने वाले लोगों के बीच भी बस पंचायत चुनाव की हीं चर्चा है। जिसमें मतदाताओं की अपनी अपनी बात है। कुछ पक्ष है तो, कुछ विपक्ष भी है। बता दें कि इस वर्ष प्रखंड के कई पंचायतों में बाए़ व बारिश का कहर रहा है। जो इस बार के चुनाव में मुख्य मुद्दा भी है। -------------------- समझ सके तो बुद्धिमान :- शेरहवा के अशोक कुमार का कहना है कि इस वर्ष बाढ़ क्या आई, यह समस्या राजनीति के केंद्र में है। जनता को राहत चाहिए, चाहे किसी के माध्यम से मिले। हालांकि प्रत्याशी लोगों को कई तरह के सपने दिखा रहे हैं। पर, अभी कोई भी मतदाता पत्ते नहीं खोल रहा है। सबकी सुनी जा रही है। इधर बुजुर्ग काशी नाथ का कहना है कि पंचायत चुनाव से पहले कई घोषणा, वादे होते हैं। पर, इस बार जो समझ गया वही बुद्धिमान है। वरना प्रत्येक चुनाव में जनता मूर्ख बन जाती है। कपिलेश्वर मांझी का कहना है कि चूड़ा गुड़ व मुट्ठी भर अनाज से जिदगी पार नहीं लगती है। बाढ़ का कहर प्रत्येक साल झेलना पड़ता है। इससे हमेशा के लिए निदान हो तब कुछ समझ भी आए। इधर, तौकिर खान कहते हैं कि अब पहले वाली बात नहीं है। यह विधान सभा व लोक सभा का चुनाव भी नहीं है जिससे पार्टी के हवा में प्रत्याशी भी निकल गएं। जमीनी स्तर पर जिसका काम दिखेगा। उसी को दोबारा लोग चुनेंगे। वरना नए लोगों को तरजीह दी जाएगी।

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