कदम लड़खड़ा रहे थे, पर मंजिल तक पहुंचने का था जुनून
पश्चिमी चंपारण। सर आज सरकार को हमारी काफी चिता हो रही है। हमें घर बुलाया जा रहा व हमारे लिए न सिर्फ भोजन बल्कि आवासन की भी व्यवस्था की जा रही। पश्चिमी चंपारण। सर आज सरकार को हमारी काफी चिता हो रही है। हमें घर बुलाया जा र
पश्चिमी चंपारण। सर, आज सरकार को हमारी काफी चिता हो रही है। हमें घर बुलाया जा रहा व हमारे लिए न सिर्फ भोजन बल्कि आवासन की भी व्यवस्था की जा रही। पर, अब सबकुछ बेकार लग रहा। यदि वर्षों पूर्व यहीं रोजगार की व्यवस्था हो गई होती तो आज कोरोना संकट के बीच हमारा राज्य न सिर्फ सुरक्षित होता बल्कि करोड़ों रुपये भी न खर्च करने पड़ते। हमारे पांव के छाले देखिए, जीवन में कभी भी इतनी बड़ी चुनौती का सामना नहीं किया था। यह कहना है बगहा दो प्रखंड के भेलाही निवासी रामनाथ कुमार व पारस पटवारी का। दोनों युवा अपने आधा दर्जन मित्रों के साथ करीब एक साल पूर्व रोजगार के सिलसिले में राजस्थान गए थे। जयपुर की एक रोलिग कंपनी में काम मिल गया। अभी कुछ महीने ही बीते थे कि अचानक कोरोना वायरस ने दस्तक दे दी। हम लॉकडाउन हो गए। फैक्ट्री बंद हो गई तो कुछ दिनों तक कमाए हुए रुपये से भोजन की व्यवस्था की। पैसे खत्म हो गए और संकट बढ़ गया तो घर की याद आने लगी। गाड़ियों का परिचालन बंद था, लेकिन मन बेचैन था। हम सबने तय किया कि पैदल ही घर जाएंगे। चाहे जितना वक्त लग जाए। मई के पहले हफ्ते में हम निकल गए। जयपुर से दौसा, मेंहदीपुर, भरतपुर होते हुए चार दिनों में आगरा पहुंचे। यहां आए तो पैर जवाब देने लगे। छाले निकल आए। पॉकेट में रुपये नहीं थे, भूख से हाल बेहाल था। इस दौरान कुछ लोगों ने मदद की। कहीं चाय और बिस्कुट मिला तो कहीं लोगों ने पीने का पानी दिया। आगरा से शिकोहाबाद होते हुए लखनऊ पहुंच गए। यहां तक आते आते पैर लड़खड़ाने लगे थे। इस दौरान रास्ते में जहां जगह मिला, सड़क किनारे भूखे पेट सोए। दोनों युवकों ने कहा कि लखनऊ से गोरखपुर तक एक ट्रक चालक ने लिफ्ट दिया। गोरखपुर पहुंचे तो ऐसा लगा कि अब घर थोड़ी ही दूर है। नई उर्जा का संचार हुआ और हमने करीब 16 घंटे लगातार पैदल चलकर बिहार में प्रवेश किया। दोनों युवक अपने दोस्तों के साथ पीएचसी पहुंचे जहां से स्वास्थ्य जांच के बाद उन्हें गृह पंचायत देवरिया तरूअनवा के क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया गया।
घर पहुंचने का जुनून
कोई पैदल, तो कोई साइकिल से निकल पड़ा। पैदल चलकर पहुंचे कई ऐसे भी मजदूर थे, जिनके पांव जवाब दे रहे थे। इन्ही में से कुछ बगहा दो प्रखंड के देवरिया तरुअनवा पंचायत के भेलाही गांव के आधा दर्जन युवा शामिल हैं। इन युवाओं में पारसनाथ कुमार, रामनाथ पटवारी आदि ऐसे हैं, जिनके पैरों में सूजन होने के बाद भी लड़खड़ाते कदम आगे बढ़ते चले गए। आखिर में वे मंजिल तक पहुंच गये।