पुत्री इंदिरा गांधी के साथ गंडक बराज के शिलान्यास को वाल्मीकिनगर आए थे पंडित नेहरू
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू गंडक बराज के शिलान्यास के लिए अपनी पुत्री इंदिरा गांधी के साथ वाल्मीकिनगर गंडक बराज के शिलान्यास के लिए आए थे।
बगहा। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू गंडक बराज के शिलान्यास के लिए अपनी पुत्री इंदिरा गांधी के साथ वाल्मीकिनगर गंडक बराज के शिलान्यास के लिए आए थे। वे अपने साथ एक पौधा भी लेकर पहुंचे थे।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर क्षेत्र और बिहार के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों की सिचाई के लिए नहर प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से दूरदर्शी परियोजना तैयार कराई जिसका लाभ आज दिखता है। उन्होंने नेपाल के तात्कालिक शासक राजा महेन्द्र विक्रम शाह से 1959 में समझौता किया था। नारायणी नदी नेपाल की पहाड़ियों से करीब 80 किलोमीटर की यात्रा कर नेपाल के जिले नवलपरासी और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती गांव झुलनीपुर क्षेत्र से मैदानी भाग में आती है। समझौते के तहत पश्चिमी मुख्य गंडक नहर और वाल्मीकिनगर बराज का निर्माण नेपाल के भूक्षेत्र से होना था। भौगोलिक और तकनीकी वजहों से नेपाल राष्ट्र की जमीन लेना गंडक नहर प्रणाली के निर्माण के लिए ज्यादा उचित साबित हुआ। इस जमीन के बदले गंडक नदी नदी के दाएं तट पर नेपाल सीमा तक के भूभाग को बाढ़ और कटाव से बचाने की जिम्मेदारी भारत के समझौते में समावेशित है। इसके तहत 'ए गैप' बांध की लंबाई 2.5 किलोमीटर और 'बी गैप' बांध की लंबाई 7.23 किलोमीटर है। नेपाल बांध की लंबाई 12 किमी और लिक बांध की लंबाई 2.5 किमी है जिसका निर्माण उत्तर प्रदेश सिचाई और जल संसाधन विभाग खंड-2 महाराजगंज ने कराया है। उत्तर प्रदेश में पश्चिमी गंडक नहर करीब 3207 किमी के भूभाग में निíमत है। जिससे सिचाई होती है। गंडक नहर की स्थापना के समय 1959 में भारत व नेपाल के बीच एक समझौता हुआ था। जिसमें इस नहर से प्रभावित किसानों को भारत सरकार द्वारा मुआवजा देने की बात कही गई थी।
चार मई 1964 को गंडक बराज का शिलान्यास भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एवं नेपाल के राजा महेन्द्र वीर विक्रम शाह देव के द्वारा किया गया। तब पंडित नेहरू के साथ उनकी पुत्री इंदिरा भी वाल्मीकिनगर आईं थीं। कहा जाता है कि नेहरू जी अपने साथ दिल्ली से सीता अशोक का एक पेड़ लेकर आए थे। जिसे वाल्मीकिनगर हाई स्कूल के प्रांगण में लगाया गया। यह पेड़ आज भी पंडित नेहरू की याद दिलाता है। भले ही चाचा नेहरू आज हमारे बीच नहीं, लेकिन बतौर प्रधानमंत्री पश्चिम चंपारण के लिए उनके फैसले आज भी प्रासंगिक हैं।