चंद्रावती को जीवंत करने की पहल शुरू
बेतिया राज के समय में विभिन्न सामग्रियों को लाने के लिए जल परिवहन के रूप में विकसित चंद्रावत नदी अब फिर जीवंत होगी।
बेतिया। बेतिया राज के समय में विभिन्न सामग्रियों को लाने के लिए जल परिवहन के रूप में विकसित चंद्रावत नदी अब फिर जीवंत होगी। इसका जुड़ाव एक ओर जहां गंडक नदी से होगा, तो दूसरी कोहड़ा नदी के माध्यम से सिकरहना नदी से भी मिलान करा दिया जाएगा। जिलाधिकारी डा. निलेश रामचन्द्र देवरे ने चन्द्रावत नदी को अतिक्रमण मुक्त करने के साथ -साथ नदी से गाद निकालने की योजना बनाने का आदेश दिया है। यह जिम्मा जल निस्सरण डीविजन के कार्यपालक अ¨भयता को दिया गया है। जिलाधिकारी डा. देवरे ने बताया कि चन्द्रावत नदी के सर्वेक्षण कराने के लिए जल निस्सरण के कार्यपालक अभियंता को कहा गया है। कार्यपालक अभियंता को अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट 15 दिनों के अंदर सौपेंगे। इसमें नदी का भौतिक सर्वेक्षण भी हो जाएगा। सर्वेक्षण में यह पता चल जाएगा कि नदी का कितना हिस्सा अतिक्रमित है। यदि अतिक्रमित है, तो अतिक्रमणकारियों के खिलाफ शीघ्र अतिक्रमणवाद चलाने का आदेश चलाकर उसे शीघ्र खाली कराया जाएगा। डीएम ने बताया कि इस नदी में वर्षों पूर्व से जमे गाद को हटाया जाएगा। इसके लिए विभाग को डीपीआर तैयार करने का आदेश दिया गया है। भौतिक सर्वेक्षण जीओ टै¨गग से कराई जाएगी। बता दें कि चन्द्रवत नदी योगापट्टी प्रखंड के सिसवा मंगलपुर पंचायत के गजना नामक स्थान से गंडक नदी से निकलती है। यह नदी डुमरी के रास्ते चमैनिया बाजार होते हुए संत घाट आती है। संत घाट से खिरियाघाट फिर खिरियाघाट से दो भाग में बंटकर एक नौतन होते हुए गंडक नदी में मिलती है और दूसरा भाग कोहड़ा नदी में मिलने के साथ मझौलिया होते हुए सिकरहना नदी में मिलती है। जानकार बताते हैं कि पहले यह नदी जलय मार्ग के रूप में उपयुक्त होती थी। यह व्यापारिक मार्ग था। जिसमें मीर्जापुर से पत्थर से बने सामग्रियां लाई जाती थी। फिर इस नदी का जुड़ाव पश्चिम बंगाल के सोनार गांव तक था। जहां से व्यापारी कपड़ों का व्यापार करते थे। संतघाट और खिरियाघाट में सामान उतारे जाते थे। लेकिन नदी में गाद जमने एवं अतिक्रमण होने के कारण जल मार्ग बंद हो गया था।
जिलाधिकारी के द्वारा शुरु की गई इस पहल से एक ओर जहां नदी जीवंत होगी, तो दूसरी ओर यह कार्यक्रम नदी जोड़ों अभियान का भी हिस्सा बनेगा।